कविता आईना August 22, 2009 / December 27, 2011 by पुनीता सिंह | 1 Comment on आईना मानवीय मूल्यों के प्रसंग में आदर्शो की बात करते है सब, एक आईना लगा है हर घर के आँगन मे दूसरो के दोष उसमें दिखते हैं अपनी आकॄति सुन्दर॥ क्यो होता है ऐसा? खेल क्यो समझते है वो खिल्ली उडाना, मजे लेना, दिल्लगी करना। समय काटना/दूसरो को हँसाना हो सकती है उनकी आदत पर किसी […] Read more » Mirror आईना