कविता आओ धरना-धरना खेलें January 22, 2014 / January 22, 2014 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment आओ धरना-धरना खेलें सत्ता पाये भ्रष्टों के बल, मुंह तो अब छुपाना है, मूर्ख बनाओ जी भर-भर के, धरना एक बहाना है। जी भर नूरा कुश्ती खेलें, आओ धरना-धरना खेलें। (१) झुंझलाकर के सड़क पर बैठें, मुझे छोड़कर सभी चोर हैं, एक उठे पराये पर जब, तीन ऊंगलियां अपनी ओर हैं। भ्रष्टातंकी पाले चेले आओ […] Read more » poem आओ धरना-धरना खेलें