कविता साहित्य उठे कहाँ मन अब तक ! April 22, 2017 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment शब्द परश रूप गंध, रस हैं तन्मात्रा; छाता जब श्याम भाव, होता मधु-छत्ता ! राधा भव-बाधा हर, मिल जाती भूमा; अणिमा महिमा गरिमा, भा जाती लघिमा ! तनिमा तरती जड़ता, सुरभित कर उर कलिका; झंकृत तन्त्रित झलका, सुर आता रस छलका ! Read more » उठे कहाँ मन अब त