दोहे खुले हैं मन भी कहाँ! August 11, 2020 / August 11, 2020 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment खुले हैं मन भी कहाँ, गुणे हैं ग्रंथ कहाँ; हुआ अनुभव भी कहाँ, हुई अनुभूति कहाँ! पकड़े बस पथ हैं रहे, जकड़े कुछ कर्म रहे; बाल वत चल वे रहे, चोले में खुश हैं रहे! चराचर समझे कहाँ, प्राण को खोए कहाँ; ध्यान भी हुआ कहाँ, द्वैत भी गया कहाँ! गुरु को हैं जाने कहाँ, […] Read more » खुले हैं मन भी कहाँ