कविता बस, मैं और चाँद June 5, 2015 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- थोड़ी सी बूँदे गिरने से, धूल बूँदों मे घुलने से, हर नज़ारा ही साफ़ दिखता है। रात सोई थी मैं, करवटें बदल बदल कर, शरीर भी कुछ दुखा दुखा सा था, पैर भी थके थके से थे, मन अतीत मे कहीं उलझा था। खिड़की की ओर करवट लिये, रात सोई थी मैं। […] Read more » Featured कविता चांद कविता बस मैं और चाँद