लेख साहित्य
चित्रण चितेरा कर गया !
by गोपाल बघेल 'मधु'
चित्रण चितेरा कर गया, है भाव अपने ले गया; कुछ दे गया सा लग रहा, गा के वो गोमन रम गया ! गोपन में रस रच चल दिया, द्रष्टा रहे वृष्टि किया; चित की दशा समझा किया, बुधि की विधा को वर दिया ! वह व्याप्ति की बौछार में, संतृप्ति के अँकुर बोया; आलोक से निज लोक का, रास्ता दिखाया चल दिया ! रिश्ते बनाना जानता, किस्से में ना वह उलझता; अपनी ही द्युति द्रुति ढालता, अपना बनाए चाहता ! सपनों परे उर में धरे, ले ऊर्ध्व गति झकझोरता; है चोर ‘मधु’ का सखा मोहन, हिये हाँड़ी रख गया !
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