चित्रण चितेरा कर गया !

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चित्रण चितेरा कर गया,

है भाव अपने ले गया;

कुछ दे गया सा लग रहा,

गा के वो गोमन रम गया !

गोपन में रस रच चल दिया,

द्रष्टा रहे वृष्टि किया;

चित की दशा समझा किया,

बुधि की विधा को वर दिया !

वह व्याप्ति की बौछार में,

संतृप्ति के अँकुर बोया;

आलोक से निज लोक का,

रास्ता दिखाया चल दिया !

रिश्ते बनाना जानता,

किस्से में ना वह उलझता;

अपनी ही द्युति द्रुति ढालता,

अपना बनाए चाहता !

सपनों परे उर में धरे,

ले ऊर्ध्व गति झकझोरता;

है चोर ‘मधु’ का सखा मोहन,

हिये हाँड़ी रख गया !

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