कविता पीड़ा का पिंजरा September 12, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment पीड़ा के पिंजड़े की क़ैदी हूँ, पिंजड़े को तोडकर निकलना चाहती हूँ… पर सारी कोशिशें नाकाम हो रही हैं। जब भी ऐसा करने की कोशिश करती हूँ, पीड़ा बाँध लेती है, जकड़ लेती है। किस जुर्म की सज़ा मे क़ैद हूँ, नहीं पता…… कितने दिन के लिये क़ैद हूँ, ये भी नहीं पता… कुछ […] Read more » पीड़ा का पिंजरा