कविता साहित्य चलती फिरती जेल या अँधा-इंसाफ़ ? March 1, 2018 by डॉ. मधुसूदन | 6 Comments on चलती फिरती जेल या अँधा-इंसाफ़ ? डॉ. मधुसूदन चार चार बेगमों का, हक मर्दों को. और चलती-फिरती जेल,*बेगम को . मूँद कर आँख इक रोज़ बेगम बन जा. पहन कर बुरका ज़रा संसद* हो आ. अण्डे* से बाहर निकल कर देख. आँखों से, हरा चष्मा उतार कर देख. (अण्डा= दकियानूसी रुढियाँ) बुरका नहीं, है ये, चलती फिरती जेल है; हिम्मत है, चंद […] Read more » Featured चलती फिरती जेल दकियानूसी रुढियाँ बुरका