कविता मजबूर February 4, 2021 / February 4, 2021 by आलोक कौशिक | 1 Comment on मजबूर कोई भी इंसानजब मजबूर होता हैखुद से वहबहुत दूर होता है जानकर भी राज़ सारेदिखता है अनजानबनकर रह जाता हैहालातों का ग़ुलाम ऐसा भी होता हैचाहता है जब सारा ज़मानाअपनों के लिएतब इंसान होता है बेगाना कोई भी इंसानजब हो जाता है लाचारसमझ से परेहोता है उसका व्यवहार Read more » मजबूर
कविता उनकी तमन्ना March 24, 2015 by रवि श्रीवास्तव | 1 Comment on उनकी तमन्ना उन्होने तमन्नाओं को पूरा कर लिया, मुझे नही है उनसे कोई भी शिकवा। किसी के वादों से बधां मजबूर हूं, उन्हें लगता है शायद कमजोर हूं। बड़ो का आदर, छोटों का सम्मान सिखाया है, मेरे परिवार ने मुझे, ये सब बताया है। हर क्रिया की प्रतिक्रिया, हम भी दे सकते हैं, जान हथेली पर हमेशा […] Read more » उनकी तमन्ना कमजोर मजबूर