गजल मानव ही मानवता को शर्मसार करता है March 20, 2020 / March 20, 2020 by आलोक कौशिक | Leave a Comment मानव ही मानवता को शर्मसार करता है सांप डसने से क्या कभी इंकार करता है उसको भी सज़ा दो गुनहगार तो वह भी है जो ज़ुबां और आंखों से बलात्कार करता है तू ग़ैर है मत देख मेरी बर्बादी के सपने ऐसा काम सिर्फ़ मेरा रिश्तेदार करता है देखकर जो नज़रें चुराता था कल तलक […] Read more » मानव ही मानवता को शर्मसार करता है