कविता
मैं कैसा हूं इंसान?
/ by विनय कुमार'विनायक'
—विनय कुमार विनायकसंघर्ष में जीता हूंघूंट जहर का पीता हूंकिसको आत्मीयजन समझूं,जबकि सब मुझसे हैं अंजान,मैं कैसा हूं इंसान? अर्थ का बना नही दास,किया नही मैं अर्थ तलाश,फिर भी कुछ को मुझसे आस,क्या दूं उनको अनुदान,मैं कैसा हूं इंसान? घंटों कलम घिसकर,जो कुछ भी पाता हूं,कर्तव्य की वेदी पर चढ़ा,मात्र प्रसाद भर खाता हूं,पर दुनिया […]
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