धर्म-अध्यात्म यशोदानंदन-२५ March 16, 2015 / March 16, 2015 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment विपिन किशोर सिन्हा गोकुल में हो रहे नित्य के उत्पातों ने नन्द बाबा और अन्य वरिष्ठों को चिन्ता में डाल दिया था। इस विषय पर चर्चा करने के लिए सभी वयोवृद्ध ग्वाले नन्द जी के यहां एकत्र हुए। महावन में असुरों द्वारा किए जा रहे उत्पातों को रोकने के लिए सबने अपने-अपने परामर्श दिए। उपनन्द […] Read more » bal gopal gokul gopal kanha krishan lila Mathura vrindavan यशोदानंदन
धर्म-अध्यात्म यशोदानंदन-२३ March 14, 2015 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment श्रीकृष्ण जैसे-जैसे बड़े हो रहे थे, यमुना के प्रति आकर्षण वैसे-वैसे ही बढ़ रहा था। यमुना का किनारा ही उनके खेल का मैदान था। गोकुल के सारे ग्वाल-बाल उनके सम्मोहन में बंधे थे। वय में उनसे बड़े ग्वाले भी बिना किसी तर्क के उनकी बातें मानते थे। एक दिन श्रीकृष्ण, बलराम एवं अन्य बालकों […] Read more » bachpan bal gopal balkrishna bihari ji gokul Krishna lord krishna Mathura natkhat shyam ras bihari vrindavan यशोदानंदन
धर्म-अध्यात्म यशोदानंदन-२१ March 13, 2015 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment मातु यशोदा! अपनी स्मृतियों पर तनिक जोर डालें। श्रीकृष्ण के शिशु-काल की शरारतों को याद कीजिए। क्या कोई सामान्य बालक ऐसी लीला कर सकता था? जिसे आप सिर्फ अपना पुत्र समझती हैं, वह जगत्पिता है। याद कीजिए – श्रीकृष्ण को ओखल से बांधने में आपको किन-किन अवस्थाओं से गुजरना पड़ा था – मातु यशोदा के […] Read more » यशोदानंदन
धर्म-अध्यात्म यशोदानंदन-१८ March 9, 2015 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment “देख रहे हैं आर्य! आज मेरा लल्ला तीन मास और एक पक्ष का हो गया है। अत्यन्त स्वाभाविक रूप से उसका विकास हो रहा है। अब मेरा लड्डू गोपाल जांघ पलटकर करवट बदलने लगा है। मैं सौभाग्यवती हुई। चिरंजीवी हो मेरा लाडला! मैं इसके लिए बधाई उत्सव करूंगी।” यशोदा जी के मुख से उत्सव की […] Read more » यशोदानंदन
धर्म-अध्यात्म यशोदानंदन-१५ March 6, 2015 / March 6, 2015 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment नन्द बाबा और मातु यशोदा के नेत्रों से आनन्दाश्रु छलक रहे थे। समस्त गोकुलवासी भी आनन्द-सरिता में गोते लगा रहे थे। जिसे वे एक सामान्य गोप और अपना संगी-साथी समझते थे, वह परब्रह्म है, इसका रहस्योद्घाटन होते ही सभी अतीत में चले गए। कब-कब श्रीकृष्ण के साथ वे झगड़े थे, उसे खेल में हराया […] Read more » यशोदानंदन
धर्म-अध्यात्म यशोदानंदन-१४ March 5, 2015 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment पुत्र-प्राप्ति के लिए कंस ने नन्द बाबा को बधाई दी, परन्तु जब यह ज्ञात हुआ कि पुत्र का जन्म उसी रात्रि में हुआ था, जिस रात्रि में देवकी ने कन्या को जन्म दिया था, तो उसके माथे पर बल पड़ गए। एक सघन सैन्य अभियान चलाकर उसने मथुरा के सभी नवजात शिशुओं का वध […] Read more » यशोदानंदन
धर्म-अध्यात्म यशोदानंदन-१३ March 2, 2015 / March 2, 2015 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment कंस एक क्रूर अधिनायक था। पर साथ ही चतुर और धूर्त राजनीतिज्ञ भी था। मथुरा का वह राजा बन ही गया था। वहां की प्रजा, ऐसा प्रतीत होता था कि एक सांस लेने के बाद दूसरी सांस लेने के लिए कंस की आज्ञा की प्रतीक्षा करती थी। परन्तु उसने अन्य गणराज्यों की शासन-व्यवस्था में सीधे […] Read more » yashodanandan यशोदानंदन
धर्म-अध्यात्म यशोदानंदन-१२ February 28, 2015 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment योगमाया का प्रभाव समाप्त होते ही मातु यशोदा की निद्रा जाती रही। जैसे ही उनकी दृष्टि बगल में लेटे और हाथ-पांव मारते शिशु पर पड़ी, वे आनन्दातिरेक से भर उठीं। शिशु एक पवित्र मुस्कान के साथ उनको देखे ही जा रहा था। उन्होंने उसे उठाकर हृदय से लगाया। हृदय से लगते ही दूसरे क्षण शिशु […] Read more » यशोदानंदन
धर्म-अध्यात्म यशोदानंदन-११ February 27, 2015 / February 27, 2015 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment कंस तो कंस था। वह पाषाण की तरह देवी देवकी की याचना सुनता रहा, पर तनिक भी प्रभावित नहीं हुआ। देवी देवकी ने कन्या को अपनी गोद में छिपाकर आंचल से ढंक दिया था, परन्तु कंस ने आगे बढ़कर गोद से कन्या छीन ली। स्वार्थ और भय ने उसके हृदय से स्नेह और सौहार्द्र […] Read more » यशोदानंदन
धर्म-अध्यात्म यशोदानंदन-१० February 27, 2015 / February 27, 2015 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment मेघ, दामिनी और चन्द्रमा – तीनों ने जगत्पिता के एक साथ दर्शन किए। अतृप्ति बढ़ती गई। तीनों पूर्ण वेग से आकाश में प्रकट होने की प्रतियोगिता करने लगे। दामिनी की इच्छा थी कि वह प्रभु का मार्गदर्शन करे और चन्द्रमा की इच्छा थी कि वह करे। मेघ और दामिनी की इस दुर्लभ संधि ने […] Read more » यशोदानंदन
धर्म-अध्यात्म यशोदानंदन-८ February 24, 2015 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment कंस वापस अपने राजप्रासाद में आ तो गया परन्तु भगवान के प्रति शत्रुता के सागर में निमग्न वह बैठे-सोते, चलते-फिरते, भोजन करते, काम करते – जीवन की सभी अवस्थाओं में भगवान विष्णु का ही चिन्तन करने लगा। वह जितना ही इस चिन्तन से बाहर निकलने का प्रयास करता, उतना ही अनायास गहरे में डूब […] Read more » yashodanandan यशोदानंदन यशोदानंदन-८
धर्म-अध्यात्म यशोदानंदन-७ February 23, 2015 / February 24, 2015 by विपिन किशोर सिन्हा | 2 Comments on यशोदानंदन-७ अब वसुदेव को अपने शिशुओं को लेकर कंस के पास नहीं आना पड़ता था। शिशु के जन्म का समाचार पाते ही वह क्रूर स्वयं बन्दीगृह में पहुंचता था। देवकी की गोद से शिशु को छीन उनके सम्मुख ही पत्थर पर पटक देता था। छोटी बहन बिलखती रहती। अत्यधिक दुःख के कारण चेतनाशून्य हो जाती लेकिन […] Read more » यशोदानंदन