धर्म-अध्यात्म आर्यसमाज का सार्वभौमिक कल्याणकारी लक्ष्य एवं उसकी पूर्ति में बाधायें May 6, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment –मनमोहन कुमार आर्य– आर्य समाज का उद्देश्य संसार में ईश्वर प्रदत्त वेदों के ज्ञान का प्रचार व प्रसार है। यह इस कारण कि संसार में वेद ज्ञान की भांति ऐसा कोई ज्ञान व शिक्षा नहीं है जो वेदों के समान मनुष्यों के लिए उपयोगी व कल्याणप्रद हो। वेद ईश्वर के सत्य ज्ञान का भण्डार हैं […] Read more » Featured आर्य समाज आर्यसमाज का सार्वभौमिक कल्याणकारी लक्ष्य एवं उसकी पूर्ति में बाधायें दयानंद सरस्वती वेद
धर्म-अध्यात्म विविधा जीव कर्म करने में स्वतन्त्र और फल भोगने में ईश्वराधीन है May 5, 2015 / May 5, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment –मनमोहन कुमार आर्य– यदि वेद न होते तो संसार के मनुष्यों को यह कदापि ज्ञान न होता कि मनुष्य कौन व क्या है? यह संसार क्यों, कब व किससे बना, मनुष्य जीवन का उद्देश्य क्या है और उस उद्देश्य की प्राप्ति के साधन क्या-क्या हैं? वेद एक प्रकार से कर्तव्य शास्त्र के ग्रन्थ हैं जो […] Read more » Featured जीव कर्म करने में स्वतन्त्र और फल भोगने में ईश्वराधीन है जीवन कर्म वेद
धर्म-अध्यात्म महर्षि दयानन्द, आर्य समाज और गुरूकुलीय शिक्षा May 5, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment –मनमोहन कुमार आर्य- महर्षि दयानन्द ने मुख्यतः वेद प्रचार के लिए ही आर्यसमाज की स्थापना की थी। यह बातें गौण हैं कि यह स्थापना कहां की गई या कब की गई थी। किसी संस्था के गठन का उद्देश्य ही महत्वपूर्ण होता है। इसका उत्तर महर्षि दयानन्द ने स्वयं आर्यसमाज के 10 नियमों में से तीसरे […] Read more » Featured आर्य समाज गुरूकुलीय शिक्षा महर्षि दयानन्द वेद
धर्म-अध्यात्म महर्षि दयानन्द ने खण्डन-मण्डन, समाज सुधार व वेद प्रचार क्यों किया ? April 30, 2015 by मनमोहन आर्य | 1 Comment on महर्षि दयानन्द ने खण्डन-मण्डन, समाज सुधार व वेद प्रचार क्यों किया ? –मनमोहन कुमार आर्य– महर्षि दयानन्द ने सन् 1863 में दण्डी स्वामी प्रज्ञाचक्षु गुरू विरजानन्द से अध्ययन पूरा कर कार्य क्षेत्र में पदार्पण किया था। उन दिनों में देश में अज्ञान, धार्मिक व सामाजिक अन्घविश्वास, कुरीतियां व अधर्म इतना अधिक बढ़ गया था कि इन बुराईयों से मुक्त होने का न तो किसी के पास कोई […] Read more » Featured महर्षि दयानन्द महर्षि दयानन्द ने खण्डन-मण्डन वेद वेद प्रचार समाज सुधार समाज सुधार व वेद प्रचार क्यों किया ?
धर्म-अध्यात्म विविधा सच्चे आध्यात्मिक श्रम से अभ्युदय व निःश्रेयस की प्राप्ति April 28, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment –मनमोहन कुमार आर्य- ईश्वर ने मनुष्य को ऐसा प्राणी बनाया है जिसमें शक्ति वा ऊर्जा की प्राप्ति के लिए इसे भोजन की आवश्यकता पड़ती है। यदि इसे प्रातः व सायं दो समय कुछ अन्न अर्थात् रोटी, सब्जी, दाल, कुछ दुग्ध व फल आदि मिल जायें तो इसका जीवन निर्वाह हो जाता है। भोजन के बाद […] Read more » Featured ईश्वर महर्षि दयानंद वेद सच्चे आध्यात्मिक श्रम से अभ्युदय व निःश्रेयस की प्राप्ति
धर्म-अध्यात्म विविधा ‘पत्नी घर का खजाना और पतिकुल की रक्षिका है’ April 25, 2015 / April 25, 2015 by मनमोहन आर्य | 1 Comment on ‘पत्नी घर का खजाना और पतिकुल की रक्षिका है’ –मनमोहन कुमार आर्य- वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है और वेदों को स्वयं पढ़ना व दूसरों को पढ़ाना सब श्रेष्ठ मनुष्यों का परम धर्म है। यह घोषणा महाभारत काल के बाद वेदों के अपूर्व विद्वान महर्षि दयानन्द सरस्वती ने सप्रमाण की है। वेदों का अध्ययन करने पर इसमें सर्वत्र जीवनोपयगी बहुमूल्य ज्ञान व प्रेरक […] Read more » Featured अथर्ववेद ऋग्वेद पत्नी घर का खजाना और पतिकुल की रक्षिका है यजुर्वेद वेद
धर्म-अध्यात्म वर्ण और जन्मना जाति व्यवस्था तथा हमारा वर्तमान समाज April 22, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment –मनमोहन कुमार आर्य– उपलब्ध ज्ञान के आधार पर यह ज्ञात होता है कि अमैथुनी सृष्टि के प्रथम दिन ही जगत पिता ईश्वर ने अपनी शाश्वत् प्रजा मनुष्यों के कल्याणार्थ श्रेष्ठ पवित्र आत्माओं जो अग्नि, वायु, आदित्य व अंगिरा नामक चार ऋषि कहे जाते हैं, को क्रमशः चार वेदों ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद का ज्ञान […] Read more » Featured महर्षि दयानंद वर्ण और जन्मना जाति व्यवस्था तथा हमारा वर्तमान समाज वर्तमान समाज वेद
धर्म-अध्यात्म ईश्वरीय ज्ञान वेद के पुनरूद्धारक, रक्षक व प्रचारक महर्षि दयानन्द April 3, 2015 / April 4, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment भारत का इतिहास संसार में सबसे प्राचीन है। भारत के पास महाभारत नामक इतिहास ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में वर्णित महाभारत युद्ध की काल गणना करने पर यह पांच सहस्र वर्षों से कुछ अधिक पूर्व हुआ सिद्ध होता है। महाभारत से पुराना ग्रन्थ वाल्मिीकि रामायण व इसमें वर्णित इतिहास है जिसकी गणना लाखों व […] Read more » Featured ईश्वरीय ज्ञान महर्षि दयानन्द वेद
धर्म-अध्यात्म वेदों में ईश्वर से की जाने वाली एक सर्वश्रेष्ठ प्रार्थना December 29, 2014 / December 29, 2014 by मनमोहन आर्य | 2 Comments on वेदों में ईश्वर से की जाने वाली एक सर्वश्रेष्ठ प्रार्थना संसार का विवेचन करने पर यह तथ्य सामने आता है कि यह ससार किसी अदृश्य सत्ता द्वारा बनाया गया है और उसी के द्वारा चलाया जा रहा है। वही सब प्राणियों को जन्म देता है और उनका नियमन करता है। संसार व सृष्टि की भिन्न-भिन्न रचनाओं पर ध्यान दें तो लगता है कि वह सत्ता […] Read more » वेद सर्वश्रेष्ठ प्रार्थना
कला-संस्कृति वैदिक साहित्य का एक प्रमुख ग्रन्थ – संक्षिप्त महाभारत August 29, 2014 by मनमोहन आर्य | 1 Comment on वैदिक साहित्य का एक प्रमुख ग्रन्थ – संक्षिप्त महाभारत -मनमोहन कुमार आर्य- महाभारत विश्व में आज से 5115 वर्ष से पूर्व घटित इतिहास विषयक घटनाओं की प्रसिद्ध पुस्तक है। इसके मूल लेखक महर्षि वेद व्यास थे। आर्य जाति एवं विश्व का सौभाग्य है कि विगत अवधि में घटी वैदिक ज्ञान विरोधी घटनाओं के बावजूद महाभारत पूर्णतः नष्ट होने से बच गया और हमारे पास […] Read more » ग्रन्थ महाभारत वेद वैदिक साहित्य
कला-संस्कृति वैदिक संस्कृति विश्व में प्रथम व श्रेष्ठ है – ‘विश्ववरणीय हमारी संस्कृति’ August 29, 2014 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment -मनमोहन कुमार आर्य- विश्व के सभी मानवों की संस्कृति क्या है? इसका उत्तर है कि संसार की सबसे प्राचीन एवं सब सत्य विद्याओं सहित जीवन के प्रत्येक पहलू पर प्रकाश डालने वाली ईश्वर प्रदत्त दिव्य ज्ञान की पुस्तक ‘वेद’ सारे विश्व की धर्म, संस्कृति, शिक्षा, संस्कार व सभ्यता का मूल है। वेदों के अनुरूप कार्य, […] Read more » वेद वेद श्रेष्ठ वैदिक संस्कृति श्रेष्ठ वेद संस्कृति
विविधा ‘सृष्टि और आध्यात्मिक विज्ञान का मूल-आधार: वेद’ July 4, 2014 by मनमोहन आर्य | 1 Comment on ‘सृष्टि और आध्यात्मिक विज्ञान का मूल-आधार: वेद’ -मनमोहन कुमार आर्य- इससे पूर्व कि सृष्टि और आध्यात्मिक विज्ञान की चर्चा की जाये, संक्षेप में यह जानना आवष्यक है कि वेद क्या हैं? वेद एक शब्द है जिसका अर्थ जानना व ज्ञान होता है। संसार में वेद नाम की अन्य कोई पुस्तक नहीं है जिसका कि कोई इतिहास न हो अर्थात् वेद-नामेतर सभी पुस्तकों […] Read more » आध्यात्मिक विज्ञान आर्य वेद सृष्टि