कविता ‘वेबलेंथ’ का खेल October 15, 2017 by अलकनंदा सिंह | Leave a Comment भावों के विशाल पर्वत पर, उगती खिलती आकाश बेल चढ़ती- कुछ हकीकतें और कुछ आस्था, का मेल होती है मित्रता। तय परिधियों के अरण्य में ब्रह्म कमल सी एक बार खिलती मन-सुगंध को अपनी नाभि में समेटने का खेल होती है मित्रता। स्त्री- पुरुष, पुरुष -स्त्री, स्त्री-स्त्री, पुरुष- पुरुष, के सारे विभेद नापती, अविश्वास से […] Read more » Featured वेबलेंथ