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Tag: वे ही बने हैं वर्ण पर्ण

कविता

वे ही बने हैं वर्ण पर्ण!

July 17, 2020 / July 17, 2020 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment

वे ही बने हैं वर्ण पर्ण, वरण विभु किए; धारण किए हैं धर्म, मर्म वे ही हर छुए! हर रण में रथ उन्हीं का रहा, सारथी वे ही; हर देही चक्र शोध किए, शाश्वत वही!  वे व्योम वायु ज्वाल जलधि भूतल भास्वर; उर चेतना से चित्र चित्त, बनाए अधर!  साहित्य संस्कृति है रही, उनसे ही उभर; अध्यात्म ज्ञान गह्वर के, वे ही सुर प्रवर! राजा व प्रजा वे ही बने, जगत चलाए; ‘मधु’ महत मखे अहं चित्त, नाच नचाए!   ✍? गोपाल बघेल ‘मधु’ 

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वे ही बने हैं वर्ण पर्ण
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