व्यंग्य व्यंग्य/ नंगे पैर August 23, 2010 / December 22, 2011 by अखिलेश शुक्ल | 2 Comments on व्यंग्य/ नंगे पैर -अखिलेश शुक्ल विश्व के किसी भी लोकतांत्रिक देश में पहले यह अनहोनी घटना घटित नही हुई थी। बहुत खोजने पर किसी भी देश के इतिहास में इस बात का उल्लेख नही मिला की कोई मंत्रीजी सदन में नंगे पैर आ गये हों। उस दिन सदन की कार्यवाही प्रारंभ होते ही खुसुर पुसुर होने लगी। सम्माननीय […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ जागो… सरकार प्यारे… August 16, 2010 / December 22, 2011 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य/ जागो… सरकार प्यारे… -अशोक गौतम ज्यों ही पंचायत समिति के मिंबर बुद्धू ने नंदू प्रधान को स्नेहा दिया कि अमुक डेट को सरकारों की सरकार, बड़ी सरकार उसकी पंचायत के द्वार आ रही है तो उसकी दमे की मार से सिकुड़ी छाती फूल कर कुप्पा हो गई। अब देखता हूं बिपच्छी घुंघरू को! बड़ा बनता है अपने को […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ नकली लाओ, देश बचाओ!! July 17, 2010 / December 23, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment -अशोक गौतम हे मेरे देश के ढोरों से लेकर भगवान तक को नकली माल पर ब्रांडिड का लेबल लगा खिला उसे जिंदा रखने के भरम में डाल जीने का अभय दान देने वालो! क्षमा करना ,मैं मंदबुद्धि, दुर्बद्धि, अल्पबुद्धि, मूढ़मति, उल्लू का पट्ठा, गधा, सूअर और न जाने क्या-क्या, कल तक आपका घोर विरोधी था। […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ आमरण अनशन पर कुत्ते!! June 29, 2010 / December 23, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment -अशोक गौतम मुहल्ले में कई दिनों से देख रहा था कि वहां के कुत्ते एकाएक गायब हो गए थे। मुहल्ला ही उजाड़ लग लग रहा था कुत्तों के बिना। लगा जैसे मेरा सबकुछ कहीं गुम हो गया हो। वैसे भी कुत्तों के साथ रहते आधी से अधिक जिंदगी तो कट ही गई। बाकी भी खुदा […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ छोड़ो सबकी बातें!! June 19, 2010 / December 23, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment साहब जी! जीव इस धरती पर आकर, जनसेवक हो अगर अपने मंदिर न बनवा पाए तो नरक को जाए, इसी डर से उन्होंने जनसेवा के सारे काम छोड़ जनता की पेट पर जन सेवा के बहाने लात मार गली-गली शौचालयों के बदले अपने मंदिर बनवा डाले तो स्वर्ग का रास्ता दिखा। उनको लगा कि उनका […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य : भटके कस्तूरों के लाभार्थ May 20, 2010 / December 23, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment -अशोक गौतम सभी वर्ग के कस्तूरों के लिए खुशखबरी- हमने तमाम कस्तूरों के हितार्थ टोटल संत चैनल शुरू किया है। यह चैनल फैशन चैनल की तरह चौबीसों घंटे भटके हुए कस्तूरों को मनचाही शांति मुहैया करवाएगा। वैसे भी आज के दौर में फैशन और धर्म एक सिक्के के दो पहलू हैं। अर्थात् फैशन ही धर्म […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ एक बद्दुआ उनके लिए May 19, 2010 / December 23, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment -अशोक गौतम वे अल सुबह हफ्तों से अनधुली वर्दी से बाहर होते शिमला- कालका रेलवे लाइन के इंजन की तरह हांफते जा रहे थे। पता नहीं किधर! कानून के बंदे हैं साहब! भगवान तक को बिन बताए पूरे हक से कहीं भी आ जा सकते हैं। उनके आने जाने के बारे में उनसे जब उनकी […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ रब्बा, विवाद दे खाद दे May 4, 2010 / December 24, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment -अशोक गौतम वे धर्म-निरपेक्ष देश में धर्म के नाम पर हुए दंगा ग्रस्त क्षेत्र का दौरा करते सिसकते धारा 144 लगे हुए चौक पर से गुजर रहे थे कि चौक पर दोनों हाथ आसमान की ओर किए किसीके दहाड़े मार मार रो कुछ मांगने की आवाज ने उनके पांव रोक दिए, ‘या रब्ब! चढ़ादे मुझे […] Read more » vyangya व्यंग्य
आर्थिकी व्यंग्य व्यंग्य/ हम जिंदा हैं मेरे भाई! April 22, 2010 / December 24, 2011 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य/ हम जिंदा हैं मेरे भाई! सौ चूहे खाकर शान से पास बैठी बिल्ली ने नजरें मटकाते कहा, ‘हज करने जा रही हूं। हैप्पी जरनी नहीं कहोगे?’ तो मैंने मन ही मन मुसकाते कहा, ‘एक तो सौ चूहे खाकर बिल्ली हज करने नहीं जा सकती और जाएगी तो हज में नहीं पहुंच पाएगी। कहीं और ही पहुंचेगी।’ ‘क्यों?’ ‘उसका पेट भारी […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ चल यार! जिंदगी में कुछ तो बना April 15, 2010 / December 24, 2011 by अशोक गौतम | 4 Comments on व्यंग्य/ चल यार! जिंदगी में कुछ तो बना उस वक्त सुबह के सात की बजे ही सूरज घरवाली की तरह सिर पर चढ़ आया था। चारपाई पर पड़े पड़े योगा करके हटा ही था कि मोबाइल की घंटी बज उठी। पड़ोसी का ही होगा। वही बेचारा हर सुबह परेषानी में उठता है और रात को परेशानी में ही सो जाता है। मोबाइल उठाया […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ क्या बोलूं क्या बकवास करूं April 13, 2010 / December 24, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment जबसे दुनियादारी को समझने लायक हुआ था थोड़ा-थोड़ा करके मरता तो रोज ही था पर माघ शुक्ल द्वितीय को, चार सवा चार के आसपास सरकारी अस्पताल की चारपाई पर पड़े-पड़े पता नहीं किस गोली का असर हुआ कि मैं रोज-रोज के मरने से छूट गया और सच्ची को मर गया। हा! हा! हा!! अब बंदा […] Read more » vyangya अशोक गौतम व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/…..उसके डेरे जा!!! March 30, 2010 / December 24, 2011 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य/…..उसके डेरे जा!!! ईमानदारी, सच, विश्वास की रूखी सूखी, आधी पौनी खाते हुए मर मर के जी रहा था कि उस दिन परम सौभाग्य मेरा एक सच्चा दोस्त मुझे पहुंचे हुए बाबा के पास जबरदस्ती ले गया, यह कहकर कि ये वे पहुंचे हुए बाबा हैं कि जो अपने भक्तों के दुख फूंक मार कर पल छिन में […] Read more » vyangya व्यंग्य