व्यंग्य साहित्य शर्मसार भी तो किसके आगे August 9, 2016 by अशोक गौतम | Leave a Comment बाजार द्वारा अपने ठगे जाने की अनकही प्रसन्नता के चलते गुनगुनाता- भुनभुनाता हुआ घर की ओर आ रहा था कि घर की ओर जा रहा था राम जाने। बाजार द्वारा ठगे जाने के बाद आदमी होश खो बैठता है और मदहोशी में घर की ओर अकसर लौटता है मंद मंद मुस्कुराते कि उसे बाजार से […] Read more » शर्मसार