समाज
हे देवि! अब मृजया रक्ष्यते को लेकर हमारी शर्मिंदगी भी स्वीकार करें
by अलकनंदा सिंह
अतिवाद कोई भी हो, वह सदैव संबंधित विषय की उत्सुकता को नष्ट कर देता है। अति की घृणा, प्रमाद, सुंदरता, वैमनस्य, भोजन, भूख, जिस तरह जीवन को प्रभावित करती हैं और स्वाभाविक प्रेम, त्याग, कर्तव्य को खा जाती हैं उसी प्रकार आजकल ”अति धार्मिकता” अपने कुछ ऐसे ही दुष्प्रभावों को हमारे सामने ला रही है। […]
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