कविता साहित्य
सन्नाटा
by बीनू भटनागर
कभी कभी एक सन्नाटा, छा जाता है, भीतर ही भीतर, तब कोई आहट , कोई आवाज़, बेमानी सी हो जाती है। इस सन्नाटे से डरती हूँ, क्योंकि इस सन्नाटे में, अतीत और भविष्य, दोनो की नकारात्मक, तस्वीरें उभरने लगती हैं, वर्तमान का अर्थ ही बदल जाता है, सब बेमानी होने लगता है। इस सन्नाटे से […]
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