कविता सुनो सुजाता : एक May 29, 2018 by आशुतोष माधव | Leave a Comment सुनो सुजाता : एक सुनो सुजाता मैं नहीं जानता तुम्हारा समाज-सत्य। शब्दार्थ की रपटीली पगडंडियाँ यदि हैं,आपका सचेत चुनाव तो आओ, बैठो बातें करो। सुनो सुजाता : दो शब्द सोते हैं शब्द जागते हैं रोना, खिलखिलाना, गुदगुदाना या फिर बाएँ कान में खुसफुसाना : सब कुछ करते हैं शब्द ठीक हमारी तरह। फर्ज करो हमें […] Read more » कम बुरा बुरा मामूली बुरा समाज-सत्य सुनो सुजाता : एक