कविता हे हंसवाहिनी माँ January 22, 2021 / January 22, 2021 by आलोक कौशिक | Leave a Comment हे हंसवाहिनी माँहे वरदायिनी माँ अज्ञान तम से हूँ घिराअवगुणों से हूँ मैं भरासुमार्ग भी ना दिख रहाजीवन जटिल हो रहा ज्योति ज्ञान की जलाकरगुणों की गागर पिलाकरसत्पथ की दिशा दिखाकरजीवन सफल बना दो माँ हे हंसवाहिनी माँहे वरदायिनी माँ तू ही संगीत तू ही भाषातुम ही विद्या की परिभाषातेरी शरण में जो भी आताबुद्धि […] Read more » हे हंसवाहिनी माँ