कविता
होली मंगलमय
/ by अरुण तिवारी
जब नशेमन कालिख पुत जाती है,सत्ता एकरंगी होड़ बढ़ाती है,सभा धृतराष्ट्री हो जाती है,औ कृष्ण नहीं जगता कोई,तब असल अमावस आती है . तब कोई प्रहलाद हिम्मत लाता है,पूरे जग को उकसाता है,तब कुछ रशिमरथी बल पाते हैं,एक नूतन पथ दिखलाते हैं. द्रौपदी खुद अग्निलहरी हो जाती है ,कर मलीन दहन होलिका ,निर्मल प्रपात बहाती […]
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