होली मंगलमय

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जब नशेमन कालिख पुत जाती है,
सत्ता एकरंगी होड़ बढ़ाती है,
सभा धृतराष्ट्री हो जाती है,
औ कृष्ण नहीं जगता कोई,
तब असल अमावस आती है .

तब कोई प्रहलाद हिम्मत लाता है,
पूरे जग को उकसाता है,
तब कुछ रशिमरथी बल पाते हैं,
एक नूतन पथ दिखलाते हैं.

द्रौपदी खुद अग्निलहरी हो जाती है ,
कर मलीन दहन होलिका ,
निर्मल प्रपात बहाती है,
बिन महाभारत पाप नशाती है.

तब नई सुबह हो जाती है,
नन्ही कलियां मुसकाती हैं,
रंग इंद्रधनुषी छा जाता है,
हर पल उत्कर्ष मनाता है,

तब मेरे मन की कुंज गलिन में
इक भौंरा रसिया गाता है,
पल-छिन फाग सुनाता है,
बिन फाग गुलाल उङाता है,

जो अपने हैं, सो अपने हैं,
वैरी भी अपना हो जाता है,
एकरंगी को बुझा-सुझा,
बहुरंगी पथिक बनाता है .

तब मन मयूर खिल जाता है,
हर पल होली कहलाता है।

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