विविधा प्रायोजित विमर्श के खतरे और बहुलतावाद August 3, 2010 / December 22, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 1 Comment on प्रायोजित विमर्श के खतरे और बहुलतावाद -जगदीश्वर चतुर्वेदी उत्तर-आधुनिक स्थिति में बहुसांस्कृतिकवाद की धारणा हठात् चर्चा के केन्द्र में आ गई है। इस धारणा का बौद्धिकों के द्वारा विमर्श के लिए बढ़ता आकर्षण इस बात का संकेत है कि इसके पीछे मंशाएं कुछ और हैं। ये लोग फैशनेबुल वस्त्रों की तरह धारणाएं बदल रहे हैं, धारणाओं के प्रति मनमाना व्यवहार कर […] Read more » Dangers विमर्श के खतरे
विविधा त्रासद अतीत से पलायन के खतरे March 18, 2010 / December 24, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | Leave a Comment जब भी किसी चीज को सौंदर्यबोधीय चरम पर पहुँचा दिया जाता है उसे हम भूल जाते हैं। अब हमें विभीषिका की कम उसके कलात्मक सौंदर्यबोध की ज्यादा याद आती है। अब द्वितीय विश्वयुद्ध की तबाही की नहीं उसकी फिल्मी प्रस्तुतियों, टीवी प्रस्तुतियों के सौंदर्य में मजा आता है। सौंदर्यबोधीय रूपान्तरण त्रासदी को आनंद में तब्दील […] Read more » Dangers खतरे