खान-पान लेख समाज कुपोषण आज भी एक सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती है December 18, 2024 / December 18, 2024 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment सुनील कुमार महला आधुनिक युग में हमारी जीवनशैली में आमूलचूल परिवर्तन आए हैं और आज हमारी खान-पान की आदतों में बहुत बदलाव हो चुके हैं। खान-पान भी समय पर नहीं किया जा रहा है, आधुनिक शहरी, भागम-भाग भरी जीवनशैली के साथ देर रात को खाना आज जैसे फैशन हो चुका है। दिन में भी न ब्रेकफास्ट का कोई समय है और न ही लंच का। आजकल तो ब्रेकफास्ट और लंच दोनों के स्थान पर ब्रंच का कंसेप्ट भी भारतीय संस्कृति में जन्म ले चुका है। आज मनुष्य अपने शरीर की आवश्यकता से अधिक कैलोरी का सेवन करता है और उस अनुरूप शारीरिक व्यायाम,कसरत, मेहनत आज आदमी नहीं करता। कहना ग़लत नहीं होगा कि अत्यधिक प्रसंस्कृत(डिब्बा बंद) भोजन, उच्च चीनी वाले खाद्य पदार्थ और पेय, तथा उच्च मात्रा में संतृप्त वसा वाले खाद्य पदार्थ आज मनुष्य में अधिक वजन का कारण बन रहें हैं। आनुवंशिकी मोटापे का एक मजबूत घटक है. चीनी-मीठे, उच्च वसा वाले इंजीनियर्ड जंक फूड्स, फास्ट फूड, हमारी भोजन की असमय करने की आदतें, वेस्टर्न कल्चर(पाश्चात्य संस्कृति) के बहुत से आहार, तथा बहुत बार विभिन्न पर्यावरणीय कारक भी मोटापा लाते हैं। वास्तव में मोटापा (ओबैसिटी) वो स्थिति होती है. जब अत्यधिक शारीरिक वसा शरीर पर इस सीमा तक एकत्रित हो जाती है कि वो स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालने लगती है। यहां तक कि यह आयु संभावना को भी घटा सकता है, मनुष्य की बीएमआई(शरीर द्रव्यमान सूचक) को प्रभावित कर सकता है। सच तो यह है कि मोटापा बहुत से रोगों से जुड़ा हुआ है, जैसे हृदय रोग(हार्टअटैक) , मधुमेह(डायबिटीज), निद्रा कालीन श्वास समस्या, कई प्रकार के कैंसर आदि आदि। सच तो यह है कि आज मोटापा दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है। यह बहुत ही चिंतनीय है कि आज दुनिया में हर आठवां व्यक्ति मोटापे का शिकार है। क्या यह बहुत चिंताजनक नहीं है कि तीन दशकों में मोटापे (ओबैसिटी) की समस्या में चार गुना से भी अधिक इजाफा हुआ है। आज बड़े बुजुर्गों से लेकर महिलाओं, बच्चों को शामिल करते हुए सभी उम्र के लोगों में मोटापे की समस्या बढ़ रही है। आज शहरों में वज़न कंट्रोल करने के लिए अनेक जिम खुले हैं लेकिन हमारी जीवनशैली ऐसी हो चुकी है कि मोटापा कम होने का नाम तक नहीं ले रहा है। हम अपनी संस्कृति को छोड़कर वेस्टर्न कल्चर को आज अपना रहे हैं और आज हमारी भोजन पद्धति में जो बदलाव आए हैं, वे मोटापे के प्रमुख कारण हैं। आज क्रोनिक बीमारियों का कारण कुछ और नहीं बल्कि शरीर का मोटापा ही तो है। मोटापे के संदर्भ में द लैंसेट जर्नल का अध्ययन चौंकाने वाला है। जानकारी देना चाहूंगा कि द लैंसेट जर्नल में प्रकाशित विश्लेषण के अनुसार, दुनिया भर में मोटापे से ग्रस्त बच्चों, किशोरों और वयस्कों की कुल संख्या एक बिलियन (एक अरब) से अधिक हो गई है। शोधकर्ताओं ने यह बात कही है कि, साल 1990 के बाद से कम वजन वाले लोगों की घटती व्यापकता के साथ अधिकांश देशों में मोटापा के शिकार लोगों की संख्या काफी बढ़ी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अन्य सहयोगियों के साथ इस वैश्विक डेटा के विश्लेषण में अनुमान लगाया है कि दुनिया भर के बच्चों-किशोरों में साल 1990 की तुलना में 2023 में, यानी तीन दशकों में मोटापे की दर चार गुना बढ़ गई है। सबसे बड़ी बात तो यह है यह चलन लगभग सभी देशों में देखा गया है। वयस्क आबादी में, महिलाओं में मोटापे की दर दोगुनी और पुरुषों में लगभग तीन गुना से अधिक हो गई। अध्ययन के अनुसार साल 2022 में 159 मिलियन (15.9 करोड़) बच्चे-किशोर और 879 मिलियन (87.9 करोड़) वयस्क मोटापे के शिकार पाए गए हैं। अध्ययन में यह पाया गया कि पिछले तीन दशकों में वयस्कों में मोटापा दोगुना से अधिक हो गया है। वहीं 5 से 19 साल के बच्चों और किशोरों में यह समस्या चार गुना बढ़ गई है। इतना ही नहीं, अध्ययन में यह भी सामने आया कि 2022-23 में 43 फीसद वयस्क अधिक वजन वाले थे। इस अध्ययन के अनुसार 1990 से 2022 तक विश्व में सामान्य से कम वजन वाले बच्चों और किशोरों की संख्या में कमी आई है। इतना ही नहीं, यह स्टडी बताती है कि दुनिया भर में समान अवधि में सामान्य से कम वजन से जूझ रहे वयस्कों का अनुपात आधे से भी कम हो गया है। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि यह अध्ययन कुपोषण के विभिन्न रूपों संबंधी वैश्विक रूझानों की विस्तृत तस्वीर प्रस्तुत करता है। यहां यह भी कहना ग़लत नहीं होगा कि आज दुनिया के ग़रीब इलाकों, हिस्सों में करोड़ों लोग आज भी कुपोषण से पीड़ित हैं। बहरहाल, पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि रिसर्चर ने इस अध्ययन के लिए 190 से अधिक देशों का प्रतिनिधित्व करने वाले पांच वर्ष या उससे अधिक उम्र के 22 करोड़ से अधिक लोगों के वजन और लंबाई(बीएमआई) का विश्लेषण किया, जिसमें सामने आया है कि सामान्य से कम वजन वाली लड़कियों का अनुपात वर्ष 1990 में 10.3 फीसद से गिरकर 2023 में 8.2 फीसद हो गया और लड़कों का अनुपात 16.7 फीसद से गिरकर 10.8 फीसद हो गया है।अध्ययन में यह भी पाया गया कि कुपोषण की दर भी कई जगहों पर विशेषकर दक्षिण- पूर्व एशिया और उप-सहारा अफ्रीका में एक सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती है। Read more » malnutrition Malnutrition is still a public health challenge
विविधा कैसे मिले भारत को भुखमरी व कुपोषण से मुक्ति October 28, 2017 by विनोद बंसल | Leave a Comment विनोद बंसल पूरी दुनिया 7.30 अरब लोगों की है। 1.40 अरब आबादी के साथ चीन पहले नंबर पर तो भारत 1.28 अरब के कुल जन-धन के साथ दुनिया में दूसरे पायदान पर है। अमेरिका की कुल जनसंख्या 32 करोड़ होने को है। उसके बाद 20.26 करोड़ की आबादी का ब्राजील और 25.36 करोड़ का इंडोनेशिया है। विश्व की 47 प्रतिशत आबादी केवल भारत, चीन, अमेरिका, ब्राजील और इंडोनेशिया में बसती है। अब […] Read more » Featured hunger India India to get rid of hunger India to get rid of mal nutrition mal nutrition malnutrition कुपोषण भुखमरी भुखमरी से मुक्ति
समाज कुपोषण से मुक्त होगा झारखंड October 6, 2016 by चरखा फिचर्स | Leave a Comment राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में लड़की की कम उम्र में शादी और मां बनने से बच्चे कुपोषित जन्म ले रहे हैं। कम उम्र की मां ने गर्भधारण के मानकों का पालन नहीं किया और 6 माह तक बच्चे को स्तनपान भी नहीं कराया, इस कारण बच्चे कुपोषण के शिकार हो रहे है। इंडियन कांउसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च का कहना है कि 65 ग्राम दाल बच्चों को दिया जाना चाहिए लेकिन राज्य में 30 ग्राम दाल भी उन्हें नहीं मिल रहा है। Read more » Featured Jharkhand to get rid from Malnutrition malnutrition कुपोषण कुपोषण से मुक्त कुपोषण से मुक्त होगा झारखंड झारखंड
बच्चों का पन्ना कुपोषण: राष्ट्रीय शर्म बनाम राष्ट्रीय भ्रम January 16, 2012 / January 15, 2012 by राजेश कश्यप | 2 Comments on कुपोषण: राष्ट्रीय शर्म बनाम राष्ट्रीय भ्रम राजेश कश्यप हाल ही में प्रधानमंत्री ने भूख और कुपोषण सर्वेक्षण रिपोर्ट (हंगामा-2011) जारी करते हुए, स्पष्टतः स्वीकार किया कि देश में भूखमरी और कुपोषण की स्थिति राष्ट्रीय शर्म का विषय है। निःसन्देह यह रिपोर्ट दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक और विश्व की दूसरी सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले देश को हकीकत का आईना दिखाती […] Read more » malnutrition malnutrition a national shame कुपोषण राष्ट्रीय भ्रम राष्ट्रीय शर्म
विविधा खाद्य सुरक्षा से संभव है कुपोषण पर काबू January 13, 2012 / January 13, 2012 by नवनीत कुमार गुप्ता | 4 Comments on खाद्य सुरक्षा से संभव है कुपोषण पर काबू नवनीत कुमार गुप्ता प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने हाल ही में कुपोषण पर एक सर्वे रिपोर्ट जारी की जिसके अनुसार हमारे देश में पांच साल से कम आयु वाले 42 प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने चिंता जताते हुए कुपोषण को राष्ट्रीय शर्म बताया। उन्होंने नीति निर्माताओं और कार्यक्रमों को […] Read more » food security malnutrition कुपोषण खाद्य सुरक्षा