साहित्य ज्ञानप्रेम के दीवाने नामवर October 23, 2010 / December 20, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 3 Comments on ज्ञानप्रेम के दीवाने नामवर -जगदीश्वर चतुर्वेदी नामवर सिंह के व्यक्तित्व के कई कोण हैं। उनमें से एक है उनका ‘राष्ट्रीय व्यक्तित्व’ का कोण। हिन्दी के लेखकों में प्रेमचंद के बाद वे अकेले ‘राष्ट्रीय व्यक्तित्व’ की पहचान वाले लेखक हैं। हिन्दी के लेखकों की नज़र उनके हिन्दी पहलू से हटती नहीं है। खासकर शिक्षकों-लेखकों का एक बड़ा हिस्सा उन्हें प्रोफेसर […] Read more » Namwar Singh नामवर सिंह
आलोचना चेग्वेरा क्यों नहीं बने नामवर सिंह October 10, 2010 / December 21, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 3 Comments on चेग्वेरा क्यों नहीं बने नामवर सिंह -जगदीश्वर चतुर्वेदी सवाल टेढ़ा है लेकिन जरूरी है कि चेग्वेरा क्यों नहीं बन पाए नामवर सिंह। उन्होंने क्रांतिकारी की बजाय बुर्जुआमार्ग क्यों अपनाया ? क्रांति का मार्ग दूसरी परंपरा का मार्ग है। जीवन की प्रथम परंपरा है बुर्जुआजी की। नामवरजी को पहली परंपरा की बजाय दूसरी परंपरा पसंद है। सवाल यह है कि दूसरी परंपरा […] Read more » Namwar Singh चे ग्वारा नामवर सिंह
आलोचना सैलीबरेटी नामवर सिंह September 20, 2010 / December 22, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 8 Comments on सैलीबरेटी नामवर सिंह -जगदीश्वर चतुर्वेदी हिन्दी के वरिष्ठ आलोचक नामवर सिंह लंबे समय से ‘गायब’ हैं। कोई नहीं बता रहा वे कहां चले गए। वैसे व्यक्ति नामवर सिंह साक्षात इस धराधाम में हैं और मजे में हैं। गड़बड़ी यह हुई है कि ‘आलोचक नामवर सिंह’ गायब हो गए हैं। उनका गायब होना एक बड़ी खबर होना चाहिए था। […] Read more » Namwar Singh नामवर सिंह
आलोचना कबीर के बहाने नामवरसिंह का पुंसवादी खेल September 20, 2010 / December 22, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 4 Comments on कबीर के बहाने नामवरसिंह का पुंसवादी खेल -जगदीश्वर चतुर्वेदी अभी एक पुराने सहपाठी ने सवाल किया था कि आखिरकार तुम नामवरजी के बारे में इतना तीखा क्यों लिख रहे हो ? मैंने कहा मैं किसी व्यक्तिगत शिकायत के कारण नहीं लिख रहा। वे अहर्निश आलोचना नहीं विज्ञापन कर रहे हैं और आलोचना को नष्ट कर रहे हैं। आलोचना के सम-सामयिक वातावरण को […] Read more » Namwar Singh नामवर सिंह
साहित्य नामवर सिंह के भक्त और लोकसमाज के लोकसेवक September 17, 2010 / December 22, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 1 Comment on नामवर सिंह के भक्त और लोकसमाज के लोकसेवक -जगदीश्वर चतुर्वेदी हिन्दी में अनेक आलोचक हैं जो अभी भी चेतना की आदिम अवस्था में जी रहे हैं. कुछ ऐसे हैं जो सचेत रूप से आदिम होने की चेष्टा कर रहे हैं। समाज जितना तेजी से आगे जा रहा है वे उतनी ही तेजी से पीछे जा रहे हैं। हमें इस फिनोमिना पर गौर करना […] Read more » Namwar Singh नामवर सिंह
आलोचना फिनोमिना नामवर सिंह June 14, 2010 / December 23, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 13 Comments on फिनोमिना नामवर सिंह -जगदीश्वर चतुर्वेदी वह साहित्य में जितना चर्चित है। नेट पाठकों में भी उतना ही चर्चित है। वह व्यक्ति नहीं फिनोमिना है। वह आलोचक है, शिक्षक है, श्रेष्ठतम वक्ता है, हिन्दी का प्रतीक पुरूष है, वह जितना जनप्रिय है उतना ही अलोकप्रिय भी है, वह सत्ता के साथ है तो प्रतिवादी ताकतों के भी साथ है। […] Read more » Namwar Singh नामवर सिंह
साहित्य अज्ञेय जन्मशती पर विशेष- अज्ञेय के अलगाव और मार्क्स को क्यों भूल गए नामवर सिंह March 16, 2010 / December 24, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | Leave a Comment अशोक वाजपेयी ने रविवार (14 मार्च 2010) के जनसत्ता में अपने कॉलम में नामवर सिंह के द्वारा हाल ही में दिल्ली में दिए गए अज्ञेय के बारे में दिए भाषण के प्रमुख बिंदुओं को बताया है। वाजपेयी के अनुसार नामवरजी ने अज्ञेय की ‘नाच’ कविता का पाठ किया और आलोचना को कई नसीहतें दे ड़ालीं। […] Read more » Namwar Singh अज्ञेय अशोक वाजपेयी नामवर सिंह