दोहे हे तात तुम अज्ञात में! March 12, 2023 / March 14, 2023 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment हे तात तुम अज्ञात में, आते रहे मम गात में; प्रश्वास और प्रकाश में, हर कहर में मृदु महर में! मर्मर मुखर मुस्कान में, जल पवन बसे फुहार में; क्षिति क्षितिज मध्य प्रवास में, दे वराभय निज गोद में! हर तंतु तुम तरजे रहे, गरजे कभी कोमल रहे; सहला रहे बहला रहे, दे राग कभी […] Read more » O Tat you in the unknown!