कविता कांच के टुकड़े June 10, 2013 / June 10, 2013 by विजय निकोर | 2 Comments on कांच के टुकड़े कांच के टूटने की आवाज़ बहुत बार सुनी थी, पर “वह” एक बार मेरे अन्दर जब चटाक से कुछ टूटा वह तुमको खो देने की आवाज़, वह कुछ और ही थी ! केवल एक चटक से इतने टुकड़े ? इतने महीन ? यूँ अटके रहे तब से कल्पना में मेरी, चुभते रहे हैं तुम्हारी हर याद में मुझे। अब हर सोच तुम्हारी वह कांच लिए, कुछ भी करूँ, […] Read more » poem by vijay nikor कांच के टुकड़े
कविता वियोग – विजय निकोर January 13, 2013 / January 13, 2013 by विजय निकोर | Leave a Comment सोचता हूँ, चबूतरे पर बैठी अभी भी क्रोशिए से तुम कोई नाम बुनती हो क्या ? ….इसका मतलब ? तो, “क्या” नाम बुनती होगी ? या, कोई नाम नहीं, रिक्तता, बस रिक्तता बुनती चली जाती होगी स्वयं तुम्हारे सुकोमल हाथों से । तुम्हारी विपन्न वेदना, बस बहती चली आती होगी, तुम्हारे व्योम-मंडल से … […] Read more » poem by vijay nikor
कविता पराकाष्ठा January 6, 2013 / January 6, 2013 by विजय निकोर | 2 Comments on पराकाष्ठा विजय निकोर आज जब दूर क्षितिज पर मेघों की परतें देखीं लगा मुझको कि कई जन्म-जन्मान्तर से तुम मेरे जीवन की दिव्य आद्यन्त “खोज” रही हो, अथवा, शायद तुमको भी लगता हो कि अपनी सांसों के तारों में कहीं, तुम्हीं मुझको खोज रही हो। कि जैसे कोई विशाल महासागर के तट पर बिता […] Read more » poem by vijay nikor
कविता मैं … शीर्षकहीन ! December 10, 2012 by विजय निकोर | 2 Comments on मैं … शीर्षकहीन ! विजय निकोर तुम ! तुम्हारा आना था मेरे लिए जीवनदायी सूर्य का उदित होना, और तुम्हारा चले जाना था मेरे यौवन के वसंतोत्सव में एक अपरिमित गहन अमावस की लम्बी कभी समाप्त न होती विशैली रात । मुझको लगा कि जैसे मैं बिना खिड़्की, किवाड़ या रोशनदान की किसी बंद कोठरी में बंदी थी, और […] Read more » poem by vijay nikor
कविता वंदना November 19, 2012 / November 19, 2012 by विजय निकोर | 1 Comment on वंदना विजय निकोर सरलता का प्रवाह जो ह्रदय में बहकर उसके केन्द्र-बिन्दु में चाहे एक, केवल एक कोंपल को स्नेह से स्फुटित कर दे, और मैं अनुभव करूँ उस सरल स्नेह को बहते हर किसी के प्रति मेरे अंतरतम में, प्रभु, यही, बस यही वरदान दो मुझे । सरलता का आभास जो पी ले मेरा […] Read more » poem by vijay nikor वंदना
कविता ख़याल November 12, 2012 / November 12, 2012 by विजय निकोर | 2 Comments on ख़याल विजय निकोर तारों से सुसज्जित रात में आज कोई मधुर छुवन ख़यालों की ख़यालों से बिन छुए मुझे आत्म-विभोर कर दे, मेरे उद्विग्न मन को सहलाती, हिलोरती, कहाँ से कहाँ उड़ा ले जाए, कि जैसे जा कर किसी इनसान की छाती से उसकी अंतिम साँस वापस लौट आए, और मुंदी-मुंदी पलकों के पीछे मुस्कराते वह […] Read more » poem by vijay nikor ख़याल
कविता यंत्रणा October 24, 2012 / October 25, 2012 by विजय निकोर | 2 Comments on यंत्रणा तुम्हारा मेरा साथ एक आत्मिक यात्रा, तुम्हारा संतृप्त स्नेह दिव्य उड़ान और अब तुम्हारा अभाव भी एक आध्यात्मिक साधना है जो मेरे अन्तर में प्रच्छ्न्न, मंदिर में दीप-सी और मंदिर के बाहर सूर्य की किरणों-सी मेरे पथ को सदैव दीप्तिमान किए रहती है । हमारे इस अभौतिक पथ पर कोई पगडंडी पथरीली, कोई कँटीली, […] Read more » poem by vijay nikor