कविता साहित्य
सिर पर मेरे हाथ धर,यूं ही बढ़ाते रहना मान
/ by सुशील कुमार नवीन
चरण वंदन करता आज मैं, कर गुरु गुणगान, सिर पर मेरे हाथ धर,यूं ही बढ़ाते रहना मान। क्या वर्ण और क्या वर्णमाला, रह जाता मैं अनजान, ‘अ’ से अनार,’ए’ से एपल की न हो पाती पहचान। गिनती, पहाड़े, जोड़-घटा, न कभी हो पाती गुणा-भाग, एक-एक क्यों बनें अनेक, बोध न हो पाता कभी ये ज्ञान। […]
Read more »