व्यंग्य व्यंग्य/ इक्कीसवीं सदी के लेटेस्ट प्रेम October 8, 2010 / December 21, 2011 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य/ इक्कीसवीं सदी के लेटेस्ट प्रेम -डॉ. अशोक गौतम वे सज धज कर यों निकले थे कि मानो किसी फैशन शो में भाग लेने जा रहे हों या फिर ससुराल। बूढ़े घोड़े को यों सजे धजे देखा तो कलेजा मुंह को आ गया। बेचारों के कंधे कोट का भार उठाने में पूरी तरह असफल थे इसीलिए वे खुद को ही कोट […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ चल वसंत घर आपणे…!!! October 8, 2010 / December 21, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on व्यंग्य/ चल वसंत घर आपणे…!!! -डॉ. अशोक गौतम वसंत पेड़ों की फुनगियों, पौधों की टहनियों पर से उतरा और लोगों के बीच आ धमका। सोचा, चलो लोगों से थोड़ी गप शप हो जाए। वे चार छोकरे मुहल्ले के मुहाने पर बैठे हुए थे। वसंत के आने पर भी उदास से। वे चारों डिग्री धारक थे। दो इंजीनियरिंग में तो दो […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ गॉड फादर नियरे राखिए…. September 11, 2010 / December 22, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on व्यंग्य/ गॉड फादर नियरे राखिए…. -अशोक गौतम फिर एक और मोर्चे पर से असफल हो लौटे बीवी को मुंह बताने को मन ही नहीं कर रहा था। क्या मुंह बताता बीवी को! हर रोज वह भी मेरा हारा हुआ थोबड़ा देख देख कर थक चुकी थी। सो एक मन किया कि रास्ते में पड़ने वाले कमेटी के पानी के टैंक […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ लोकार्पणों के दौर में September 11, 2010 / December 22, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment -अशोक गौतम शहर के मेन बस स्टैंड के पास बड़े दिनों से महिला षौचालय बनकर तैयार था पर कमेटी के प्रधान बड़ी दौड़ धूप के बाद भी उस षौचालय के लोकार्पण के लिए मंत्री जी से वक्त नहीं ले पा रहे थे और महिला यात्री थे कि पुरूष शौचालय में जाने के लिए विवश थे। […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/पुलिस नाक पर भगवान August 28, 2010 / December 22, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on व्यंग्य/पुलिस नाक पर भगवान -अशोक गौतम ज्यों ही अखबार में छपा कि पुलिस लेन के लक्ष्मीनारायण के मंदिर में पुलिस की नाक तले चोरी हो गई तो पुलिस को न चाहते हुए भी हरकत में आना पड़ा। हांलाकि एक सयाने ने अखबार को परे फेंकते कहा भी, ‘यारो! डरने की कोई बात नहीं। मजे से सोए रहो। सरकार यहां […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/एक जूता तो तबीयत से उछालो प्रभु! August 26, 2010 / December 22, 2011 by अशोक गौतम | 3 Comments on व्यंग्य/एक जूता तो तबीयत से उछालो प्रभु! -अशोक गौतम कल मैं जब विधानसभा से तोड़ फोड़ कर फटी सदरी के कालर खड़े किए शान से घर आ रहा था कि अचानक नारायण मिले, मुस्कुराते हुए पूछा, ‘और मुरारी लाल! क्या हाल है? कैसी चल रही है राजनीति? मजे लगे हैं न? पांचों उंगलियां घी में और सिर कड़ाही में होगा?’ कसम से, […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ नंगे पैर August 23, 2010 / December 22, 2011 by अखिलेश शुक्ल | 2 Comments on व्यंग्य/ नंगे पैर -अखिलेश शुक्ल विश्व के किसी भी लोकतांत्रिक देश में पहले यह अनहोनी घटना घटित नही हुई थी। बहुत खोजने पर किसी भी देश के इतिहास में इस बात का उल्लेख नही मिला की कोई मंत्रीजी सदन में नंगे पैर आ गये हों। उस दिन सदन की कार्यवाही प्रारंभ होते ही खुसुर पुसुर होने लगी। सम्माननीय […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ जागो… सरकार प्यारे… August 16, 2010 / December 22, 2011 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य/ जागो… सरकार प्यारे… -अशोक गौतम ज्यों ही पंचायत समिति के मिंबर बुद्धू ने नंदू प्रधान को स्नेहा दिया कि अमुक डेट को सरकारों की सरकार, बड़ी सरकार उसकी पंचायत के द्वार आ रही है तो उसकी दमे की मार से सिकुड़ी छाती फूल कर कुप्पा हो गई। अब देखता हूं बिपच्छी घुंघरू को! बड़ा बनता है अपने को […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/टारगेट ! August 3, 2010 / December 22, 2011 by जवाहर चौधरी | 1 Comment on व्यंग्य/टारगेट ! -जवाहर चौधरी भारत में दो तरह के लोग रहते हैं, एक- जिन्हें बैंकें लोन देतीं हैं ओर दूसरे जिन्हें किसी भी हालत में नहीं देतीं। लोन लेने की पात्रता जिन्हें होती है वे प्राय: सुविधा संम्पन्न होते हैं। उनके पास पहले से ही गाड़ी-बंगला, जमीन-जायजाद, बैंक बेलेन्स वगैरह होता है। निश्विंत हो कर खाते हैं […] Read more » vyangya
व्यंग्य व्यंग्य/ नकली लाओ, देश बचाओ!! July 17, 2010 / December 23, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment -अशोक गौतम हे मेरे देश के ढोरों से लेकर भगवान तक को नकली माल पर ब्रांडिड का लेबल लगा खिला उसे जिंदा रखने के भरम में डाल जीने का अभय दान देने वालो! क्षमा करना ,मैं मंदबुद्धि, दुर्बद्धि, अल्पबुद्धि, मूढ़मति, उल्लू का पट्ठा, गधा, सूअर और न जाने क्या-क्या, कल तक आपका घोर विरोधी था। […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ आमरण अनशन पर कुत्ते!! June 29, 2010 / December 23, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment -अशोक गौतम मुहल्ले में कई दिनों से देख रहा था कि वहां के कुत्ते एकाएक गायब हो गए थे। मुहल्ला ही उजाड़ लग लग रहा था कुत्तों के बिना। लगा जैसे मेरा सबकुछ कहीं गुम हो गया हो। वैसे भी कुत्तों के साथ रहते आधी से अधिक जिंदगी तो कट ही गई। बाकी भी खुदा […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ छोड़ो सबकी बातें!! June 19, 2010 / December 23, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment साहब जी! जीव इस धरती पर आकर, जनसेवक हो अगर अपने मंदिर न बनवा पाए तो नरक को जाए, इसी डर से उन्होंने जनसेवा के सारे काम छोड़ जनता की पेट पर जन सेवा के बहाने लात मार गली-गली शौचालयों के बदले अपने मंदिर बनवा डाले तो स्वर्ग का रास्ता दिखा। उनको लगा कि उनका […] Read more » vyangya व्यंग्य