व्यंग्य व्यंग्य/ एक दुआ, सज्जनों के लिए June 14, 2010 / December 23, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment -अशोक गौतम रोज की तरह खुजलाता हुआ दफ्तर के लिए बारह बजे बिना किसी टेंशन के गुनगुनाता निकला था, पर अचानक सड़क में कहीं भी जाम न दिखा तो मेरी तो जैसे सारी हवा ही निकल गई। खटारा ट्रांसपोर्ट की बस थी की हवाई जहाज की तरह उड़े जा रही थी। सच कहूं! उस वक्त […] Read more » vyangya
व्यंग्य व्यंग्य/ थ्रू प्रापर चैनल June 3, 2010 / December 23, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment -अशोक गौतम अहा! हफ्ता पहले मेरा घोर अवसरवादी मित्र मर गया। बड़ी खुशी हुई मुझे उसके मरने पर। बहुत चालू बंदा था मित्रों! इससे पहले कि वह मरने के बाद भी किसी अवसर का लाभ उठा पाता, मैंने आव देखा न ताव और उसकी अस्थियां श्मशान से उठा सीधे हरिद्वार पहुंच ही पीछे मुड़ कर […] Read more » vyangya व्यंग
व्यंग्य व्यंग्य : भटके कस्तूरों के लाभार्थ May 20, 2010 / December 23, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment -अशोक गौतम सभी वर्ग के कस्तूरों के लिए खुशखबरी- हमने तमाम कस्तूरों के हितार्थ टोटल संत चैनल शुरू किया है। यह चैनल फैशन चैनल की तरह चौबीसों घंटे भटके हुए कस्तूरों को मनचाही शांति मुहैया करवाएगा। वैसे भी आज के दौर में फैशन और धर्म एक सिक्के के दो पहलू हैं। अर्थात् फैशन ही धर्म […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ एक बद्दुआ उनके लिए May 19, 2010 / December 23, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment -अशोक गौतम वे अल सुबह हफ्तों से अनधुली वर्दी से बाहर होते शिमला- कालका रेलवे लाइन के इंजन की तरह हांफते जा रहे थे। पता नहीं किधर! कानून के बंदे हैं साहब! भगवान तक को बिन बताए पूरे हक से कहीं भी आ जा सकते हैं। उनके आने जाने के बारे में उनसे जब उनकी […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ रब्बा, विवाद दे खाद दे May 4, 2010 / December 24, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment -अशोक गौतम वे धर्म-निरपेक्ष देश में धर्म के नाम पर हुए दंगा ग्रस्त क्षेत्र का दौरा करते सिसकते धारा 144 लगे हुए चौक पर से गुजर रहे थे कि चौक पर दोनों हाथ आसमान की ओर किए किसीके दहाड़े मार मार रो कुछ मांगने की आवाज ने उनके पांव रोक दिए, ‘या रब्ब! चढ़ादे मुझे […] Read more » vyangya व्यंग्य
आर्थिकी व्यंग्य व्यंग्य/ हम जिंदा हैं मेरे भाई! April 22, 2010 / December 24, 2011 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य/ हम जिंदा हैं मेरे भाई! सौ चूहे खाकर शान से पास बैठी बिल्ली ने नजरें मटकाते कहा, ‘हज करने जा रही हूं। हैप्पी जरनी नहीं कहोगे?’ तो मैंने मन ही मन मुसकाते कहा, ‘एक तो सौ चूहे खाकर बिल्ली हज करने नहीं जा सकती और जाएगी तो हज में नहीं पहुंच पाएगी। कहीं और ही पहुंचेगी।’ ‘क्यों?’ ‘उसका पेट भारी […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ चल यार! जिंदगी में कुछ तो बना April 15, 2010 / December 24, 2011 by अशोक गौतम | 4 Comments on व्यंग्य/ चल यार! जिंदगी में कुछ तो बना उस वक्त सुबह के सात की बजे ही सूरज घरवाली की तरह सिर पर चढ़ आया था। चारपाई पर पड़े पड़े योगा करके हटा ही था कि मोबाइल की घंटी बज उठी। पड़ोसी का ही होगा। वही बेचारा हर सुबह परेषानी में उठता है और रात को परेशानी में ही सो जाता है। मोबाइल उठाया […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ क्या बोलूं क्या बकवास करूं April 13, 2010 / December 24, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment जबसे दुनियादारी को समझने लायक हुआ था थोड़ा-थोड़ा करके मरता तो रोज ही था पर माघ शुक्ल द्वितीय को, चार सवा चार के आसपास सरकारी अस्पताल की चारपाई पर पड़े-पड़े पता नहीं किस गोली का असर हुआ कि मैं रोज-रोज के मरने से छूट गया और सच्ची को मर गया। हा! हा! हा!! अब बंदा […] Read more » vyangya अशोक गौतम व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/…..उसके डेरे जा!!! March 30, 2010 / December 24, 2011 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य/…..उसके डेरे जा!!! ईमानदारी, सच, विश्वास की रूखी सूखी, आधी पौनी खाते हुए मर मर के जी रहा था कि उस दिन परम सौभाग्य मेरा एक सच्चा दोस्त मुझे पहुंचे हुए बाबा के पास जबरदस्ती ले गया, यह कहकर कि ये वे पहुंचे हुए बाबा हैं कि जो अपने भक्तों के दुख फूंक मार कर पल छिन में […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ तो तुम किसके बंदे हो यार? March 22, 2010 / December 24, 2011 by अशोक गौतम | 3 Comments on व्यंग्य/ तो तुम किसके बंदे हो यार? भाई ढाबे में टूटी बेंच पर चिंता की मुद्रा में बैठा था। बेंच के सहारे रखे डंडे में उसने अपनी टोपी पहना रखी थी। सामने टेबल पर चाय का गिलास ठंडा हो रहा था। पर वह उस सबसे बेखबर न जाने किस लोक में खोया था। मेरे देश में वर्दी वाला चिंता में? वह तो […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ देश के फ्यूचर का सवाल है बाबा! March 13, 2010 / December 24, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment ऐक्चुअली मैं उनका खासमखास तबसे हुआ जबसे मैंने चुनाव में उनके नाम भारी जाली मतदान सफलतापूर्वक करवाया था और वे भारी मतों से जीते थे। आज की डेट में उनको अकबर तो नहीं कह सकता पर मैं उनके लिए बीरबल की तरह हूं। जब भी वे परेशान होते हैं लाइफ लाइन में मुझे ही यूज […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ दाल बंद, मुर्गा शुरु March 5, 2010 / December 24, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment मैं उनसे पहली दफा बाजार में मदिरालय की परछाई में मिला था तो उन्होंने राम-राम कहते मदिरालय की परछाई से किनारे होने को कहा था। उन दिनों मैं तो परिस्थितियों के चलते शुद्ध वैष्णव था ही पर वे सरकारी नौकरी में होने के बाद भी इतने वैष्णव! मन उनके दर्शन कर आह्लादित हो उठा था। […] Read more » vyangya व्यंग्य