कविता एक विरहणी के अंगो का हाल June 20, 2018 / June 20, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment आर के रस्तोगी मस्तिष्क अब घूम रहा है, हर तरफ तुझ को ढूंढ रहा है क्यों ये चक्कर काट रहा है ,तेरे से क्या ये मांग रहा है आँखे भी अब बरस रही है,तेरे दर्शन को तरस रही है पलके भी अब भीग रही है,तेरे रूमाल को तरस रही है गेसू भी ये बिखरे […] Read more » “आँखे एक विरहणी के अंगो का हाल गोरे गाल लाल दांत भी सर्दी माथे की बिंदिया
कविता साहित्य आँखे February 5, 2018 by राकेश कुमार सिंह | Leave a Comment बड़ी ख़ूबसूरत है तुम्हारी आँखे ! मेरी जिंदगी है तुम्हारी आँखे ! ये झुके तो जश्ने बहार मचल जाये ! खुदा की नेमत है तुम्हारी आँखे ! पलकों के झपकने का सबब मालूम नहीं ! मेरी राजदार है तुम्हारी आँखे ! ये उठे तो ज़माने को झुका दे ! बड़ी आफरीन है ! मंदिर और […] Read more » “आँखे
कविता “आँखे, झरोखें और उष्मा” March 3, 2013 by प्रवीण गुगनानी | Leave a Comment कुछ आँखें थी सपनों को भरे अपने आगोश में. कुछ झरोखें थे जो पलकों के साथ हो लेते थे यहाँ वहां. आँखें झरोखों से आती किरणों में अक्सर तलाशती थी उष्मा को. बर्फ हो गए सपनों के संसार में उष्मा की छड़ी लिए चल पड़ती थी आँखें और बर्फ से करनें लगती थी वो संघर्ष […] Read more » “आँखे झरोखें और उष्मा”