कविता कविता ; सिलवटों की सिहरन – विजय कुमार सप्पाती March 13, 2012 by विजय कुमार सप्पाती | 1 Comment on कविता ; सिलवटों की सिहरन – विजय कुमार सप्पाती अक्सर तेरा साया एक अनजानी धुंध से चुपचाप चला आता है और मेरी मन की चादर में सिलवटे बना जाता है ….. मेरे हाथ , मेरे दिल की तरह कांपते है , जब मैं उन सिलवटों को अपने भीतर समेटती हूँ ….. तेरा साया मुस्कराता है और मुझे उस जगह छु जाता है […] Read more » poem Poems कविता कविता - सिलवटों की सिहरन