कविता कश्मीरी (विस्थापित) कविता September 17, 2011 / December 6, 2011 by कुंदन लाल चौधरी | Leave a Comment बंदिनी देवी हम निराश हो रहे हैं देवी ज्येष्ठा कि हमारी भूमिकाएं उलट गई हैं और अब हमारी बारी है तुम्हारी रक्षा करने की मूर्तिचोरों और मूर्तिभंजकों की दुष्ट योजनाओं को विफल करने की जो हमारी भूमि पर मंडरा रहे हैं। हमने तुम्हारे लिए बाड़ बना दिया है और अब हमें खिड़की-दर्शन से […] Read more » kashmir कश्मीरी (विस्थापित) कविताएं