कश्मीरी (विस्थापित) कविता

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बंदिनी देवी

 

हम निराश हो रहे हैं देवी ज्येष्ठा

कि हमारी भूमिकाएं उलट गई हैं

और अब हमारी बारी है

तुम्हारी रक्षा करने की

मूर्तिचोरों और मूर्तिभंजकों की

दुष्ट योजनाओं को विफल करने की

जो हमारी भूमि पर मंडरा रहे हैं।

 

हमने तुम्हारे लिए बाड़ बना दिया है

और अब हमें खिड़की-दर्शन से संतोष करना होगा

जब उगते सूर्य के प्रकाश में

लोहे की छड़ें तुम्हारी छवि को बाधित करती हैं।

वह भी किंतु हमें अधूरा उपाय ही लगता है,

क्योंकि वे हठधर्मी और तरीके ढूँढ रहे हैं

तुम्हें उठा ले जाने को,

और हमने तुम्हें एक अधिक सुरक्षित

बंद कमरे में लोहे के परकोटे में पहुँचा दिया है

द्वार पर पहरे के साथ!

फिर भी हमारे मन में भय होता है

कि कहीं पहरेदार षडयंत्रकारियों में न बदल जाएं

और अपहरणकर्ताओं से न मिल जाएं।

 

क्या इस यंत्रणा से मुक्ति का कोई मार्ग है,

हमारी रक्षिका,

इस के अतिरिक्त कि तुम अ-दृश्य हो

इसी निर्झर के हृदय में समा जाओ

(जहाँ से, युगों पूर्व

तुम हमारे हृदय पर शासन करने उदित हुई थीं)

और अपने पुनःअवतरण काल की प्रतीक्षा करो

जब तक हम हिसाब चुकता कर लें,

अपनी अभिशप्त घाटी में?

 

(श्रीनगर, अप्रैल 1988) 

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कुंदन लाल चौधरी
जन्म – 7 मार्च 1941, श्रीनगर। ख्यातनामा डॉक्टर। लंदन में न्यूरोलॉजी में फेलो रहे और श्रीनगर मेडिकल कॉलेज में न्यूरोलॉजी के संस्थापक। कश्मीर घाटी में आतंकवाद के दबाव से 1990 में श्रीनगर छोड़ना पड़ा और तब से जम्मू में शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं। राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय विशिष्ट जर्नलों में चिकित्सा विषयों पर अनेक शोध-पत्र प्रकाशित। निर्वासन में शरणार्थियों के लिए सेवा कार्य के लिए श्रीया भट्ट मिशन अस्पताल की स्थापना की और कश्मीरी शरणार्थियों के स्वास्थ्य संबंधी विशिष्ट समस्याओं का अध्ययन किया। शरणार्थियों के बीच ‘तनाव से डायबिटीज’ तथा ‘मनोवैज्ञानिक बीमारियों’ जैसी नई समस्याओं को पहचाना। चिकित्सा के साथ-साथ, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक विषयों पर भी लिखते रहे हैं। कश्मीरी विंडंबना को समझने के लिए उन का कविता संग्रह ऑफ गॉड, मेन एंड मिलिटेंट्स (2000) अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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