विविधा गांधीवाद की परिकल्पना-9 April 24, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य महात्मा की अपेक्षाएं महात्मा तो वह होता है जिसकी आत्मा संसार के महत्व को समझकर विषमताओं, प्रतिकूलताओं और आवेश के क्षणों में भी जनसाधारण के प्रति असमानता का व्यवहार न करते हुए समभाव का ही प्रदर्शन करती है, किंतु जिसका व्यवहार हठीला हो, दुराग्रही हो, सच को सच न कह सकता हो, […] Read more » Featured गाँधीजी गाँधीवाद देश विभाजन मानवीय मूल्य
विविधा गांधीवाद की परिकल्पना-7 April 21, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment नैतिक मूल्यों के आधार बनाकर भी गांधीवाद का एक धूमिल चित्र भारत में गांधीवादियों ने खींचने का प्रयास किया है। गांधीजी भारतीय राजनीति को धर्महीन बना गये। वह उसे संप्रदाय निरपेक्ष नहीं बना सके, अपितु उसे इतना अपवित्र करन् दिया है कि वह सम्प्रदायों के हितों की संरक्षिका सी बन गयी जान पड़ती है। इससे भारतीय राजनीति पक्षपाती बन गयी। जहां पक्षपात हो वहां नैतिक मूल्य ढूंढऩा 'चील के घोंसले में मांस ढूढऩे के बराबर' होता है। नैतिक मूल्य, नीति पर आधारित होते हैं नीति दो अक्षरों से बनी है-नी+ति। जिसका अर्थ है एक निश्चित व्यवस्था। नीति निश्चित व्यवस्था की संवाहिका है, ध्वजवाहिका है और प्रचारिका है। Read more » Featured Gandhiwad gandhiwad ki parikalpana गाँधीजी गाँधीवाद गांधीवाद की परिकल्पना धर्मनिरपेक्षता
विविधा गांधीवाद की परिकल्पना- 5 April 20, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment गांधीजी को लोकतंत्र का प्रबल समर्थक भी कहा जाता है। उनके चहेते शिष्य जवाहरलाल ने इस बात का बहुत बढ़-चढक़र प्रचार किया। जबकि उस समय की परिस्थिति गत साक्ष्य यह सिद्घ कर रहे हैं कि गांधीजी का लोकतंत्र में नही अपितु अधिनायकवाद में दृढ़ विश्वास था। अब संक्षिप्त चर्चा इस पर करते हैं। भारतीय समाज में ऐसे व्यक्ति को बुद्घिमान माना जाता है जो देश, काल और परिस्थितियों के अनुसार उचित निर्णय लेने में सक्षम और समर्थ होता है तथा अपने कार्य को निकालने में सफल होता है। गांधीजी भारतीय समाज व संस्कृति के इस तात्विक सिद्घांत को पलट देना चाहते थे। Read more » Featured असहयोग आंदोलन गाँधीजी गाँधीवाद लोकतंत्र सदगुरू रामसिंह ने प्रारंभ किया असहयोग आंदोलन
विविधा गांधीवाद की परिकल्पना -4 April 19, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment जहां तक उनकी अहिंसा नीति का प्रश्न है तो इस गांधीवादी अहिंसा की तो परिभाषा ही बड़ी विचित्र है। यदि एक ओर उन्होंने अपनी पत्नी को डॉक्टर से इंजेक्शन न लगवाने का कारण इसमें हिंसा होना बताया था तो दूसरी ओर उनकी अहिंसा का हृदय हिंदू हत्याओं की हो रही भरमार को भी देखकर कभी पिघला नहीं। अपितु मुस्लिमों के हाथों मरने के लिए उन्हें अकेला छोड़ दिया गया। हमारी अनाथ और असहाय माताओं, बहनों और ललनाओं पर किये गये मुस्लिमों के अमानवीय अत्याचारों को देखकर भी उनका हृदय द्रवित नही हुआ था, क्या इसलिए कि वे अहिंसा प्रेमी थे? Read more » Featured असहयोग आंदोलन गाँधीजी गांधीजी और असहयोग आंदोलन गाँधीवाद गांधीवाद की परिकल्पना
लेख साहित्य हिन्दू संघटन : गांधीजी, स्वामी श्रद्घानंद और स्वातंत्र्य वीर सावरकर August 24, 2016 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य सफल वक्ता वही होता है जो श्रोताओं को अपनी बात से सहमत और संतुष्ट तो कर ही ले साथ ही उसकी भाषण कला ऐसी हो जिससे लोग वही कुछ करने के लिए प्रेरित और आंदोलित भी हो उठें जिसे वह वक्ता उनसे कराना चाहता है। भाषण के अंत में यदि नेता कहे […] Read more » Featured गाँधीजी स्वातंत्र्य वीर सावरकर स्वामी श्रद्घानंद हिन्दू संघटन
कविता बडबडाहट……गाँधीजी कि पुण्यतिथि पर मेरी दो कड़वी कविताएँ May 16, 2012 / May 16, 2012 by अनुराग अनंत | 1 Comment on बडबडाहट……गाँधीजी कि पुण्यतिथि पर मेरी दो कड़वी कविताएँ कई बार आदमी कुछ कहना चाहता है पर कुछ कह नहीं पाता,ये कुछ न कह पाना उसे बहुत कुछ कहने के लिए मथ देता है,उस वक़्त उस आदमी की स्तिथि त्रिसंकू की तरह होती है वो ”कुछ” और ”बहुत कुछ” के बीच ”कुछ नहीं” को नकार कर खुद से ”कुछ-कुछ” कहने लगता है |ये ”कुछ-कुछ” […] Read more » Death Anniversary of Gandhi Ji Gandhi Ji गाँधीजी गाँधीजी कि पुण्यतिथि