कविता झकझोरता चित चोरता (मधुगीति १५०५०५-३) May 29, 2015 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment -गोपाल बघेल ‘मधु’- झकझोरता चित चोरता, प्रति प्राण प्रण को तोलता; रख तटस्थित थिरकित चकित, सृष्टि सरोवर सरसता । संयम रखे यम के चखे, उत्तिष्ठ सुर उर में रखे; आभा अमित सुषमा क्षरित, षड चक्र भेदन गति त्वरित । वह थिरकता रस घोलता, स्वयमेव सबको देखता; आत्मा अलोड़ित छन्द कर, आनन्द हर उर फुरकता । […] Read more » Featured कविता झकझोरता चित चोरता