कविता अखिलता की विकल उड़ानों में ! September 19, 2018 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment रचयिता: गोपाल बघेल ‘मधु’ अखिलता की विकल उड़ानों में, तटस्थित होने की तरन्नुम में; उपस्थित सृष्टा सामने होता, दृष्टि आ जाता कभी ना आता ! किसी आयाम वह रहा होता, झिलमिला द्रश्य को कभी देता; ख़ुमारी में कभी वो मन रखता, चेतना चित्त दे कभी चलता ! कभी चितवन में प्रकट लख जाता, घुले सुर […] Read more » अखिलता की विकल उड़ानों में ! झिलमिला द्रश्य पंखुड़ी