कविता प्रकृति का समीकरण September 8, 2018 / September 13, 2018 by डॉ छन्दा बैनर्जी | Leave a Comment डॉ. छन्दा बैनर्जी प्रकृति ने हमें मौके दिए हैं हर बार लेकिन , हम बुद्धिजीवी कहलाने वालों ने उसी प्रकृति पर प्रहार किये है बार-बार , चारों तरफ दो-दो गज ज़मीन पर चढ़ा कर कई-कई मंज़िलें सब कुछ सहने वाली धरती मां पर हम जुल्म पर जुल्म क्यों कर चले ? हम क्या सोच रहे […] Read more » धरती प्रकृति बरसने बुद्धिजीवियों
विविधा बुद्धिजीवियों की आंतरिक गुलामी की मुक्ति तलाश में April 3, 2010 / December 24, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 1 Comment on बुद्धिजीवियों की आंतरिक गुलामी की मुक्ति तलाश में आंतरिक गुलामी से मुक्ति के प्रयासों के तौर पर तीन चीजें करने की जरूरत है, प्रथम, व्यवस्था से अन्तर्ग्रथित तानेबाने को प्रतीकात्मक पुनर्रूत्पादन जगत से हटाया जाए, दूसरा, पहले से मौजूद संदर्भ को हटाया जाए, यह हमारे संप्रेषण के क्षेत्र में सक्रिय है। तीसरा, नए लोकतांत्रिक जगत का निर्माण किया जाए जो राज्य और आधिकारिक […] Read more » Inteligent बुद्धिजीवियों