कविता साहित्य बोन्साई January 12, 2017 by बीनू भटनागर | 1 Comment on बोन्साई मेरी ज़ड़ों को काट छाँट के, मुछे बौना बना दिया, अपनी ख़ुशी और सजावट के लिये मुझे, कमरे में रख दिया। मेरा भी हक था, किसी बाग़ मे रहूँ, ऊँचा उठू , और फल फूल से लदूँ। फल फूल तो अब भी लगेंगे, मगर मै घुटूगाँ यहीं तुम्हारी, सजावट के शौक के लिये, जिसको तुमने […] Read more » बोन्साई
कविता कविता : बोन्साई November 6, 2011 / December 5, 2011 by गंगानन्द झा | 1 Comment on कविता : बोन्साई पेड़ों को गहरी धरती चाहिए होती है ; पेड़ों को प्रशस्त आकाश चाहिए आज के संपन्न, सभ्य आदमी के पास न धरती है, न आकाश पर पेड़ उसे चाहिए। वह पेड़ को बोन्साई बना लेता है गमलों में पेड़ उगाए जाते हैं पेड़ बौना हो जाता है, पर पूर्ण रूप से उपयोगी रहता है; बिना […] Read more » bonsai बोन्साई