कविता मग रहे कितने सुगम जगती में ! November 15, 2018 / November 15, 2018 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment रचयिता: गोपाल बघेल ‘मधु’ मग रहे कितने सुगम जगती में, पंचभूतों की प्रत्येक व्याप्ति में; सुषुप्ति जागृति विरक्ति में, मुक्ति अभिव्यक्ति और भुक्ति में ! काया हर क्या न क्या है कर चहती, माया में कहाँ कहाँ है भ्रमती; करती मृगया तो कभी मृग होती, कभी सब छोड़ कहीं चल देती ! सोचते ही है […] Read more » अभिव्यक्ति गहराइयाँ त्रिलोक मग रहे कितने सुगम जगती में !