गजल रहते हुए भी हो कहां June 22, 2015 by गोपाल बघेल 'मधु' | 1 Comment on रहते हुए भी हो कहां -गोपाल बघेल ‘मधु’- (मधुगीति १५०६२१) रहते हुए भी हो कहाँ, तुम जहान में दिखते कहाँ; देही यहाँ बातें यहाँ, पर सूक्ष्म मन रहते वहाँ । आधार इस संसार के, उद्धार करना जानते; बस यों ही आ के टहलते, जीवों से नाता जोड़ते । सब मुस्करा कर चल रहे, स्मित-मना चित तक रहे; जाने कहाँ तुम […] Read more » Featured गजल रहते हुए भी हो कहां