विविधा प्रायोजित विमर्श के खतरे और बहुलतावाद August 3, 2010 / December 22, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 1 Comment on प्रायोजित विमर्श के खतरे और बहुलतावाद -जगदीश्वर चतुर्वेदी उत्तर-आधुनिक स्थिति में बहुसांस्कृतिकवाद की धारणा हठात् चर्चा के केन्द्र में आ गई है। इस धारणा का बौद्धिकों के द्वारा विमर्श के लिए बढ़ता आकर्षण इस बात का संकेत है कि इसके पीछे मंशाएं कुछ और हैं। ये लोग फैशनेबुल वस्त्रों की तरह धारणाएं बदल रहे हैं, धारणाओं के प्रति मनमाना व्यवहार कर […] Read more » Dangers विमर्श के खतरे