गजल साहित्य हो मुक्त बुद्धि से, हुआ अनुरक्त आत्मा चल रहा ! May 14, 2016 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment हो मुक्त बुद्धि से, हुआ अनुरक्त आत्मा चल रहा; मैं युक्त हो संयुक्त पथ, परमात्म का रथ लख रहा ! मन को किए संयत नियत, नित प्रति नाता गढ़ रहा; चैतन्य की भव भव्यता में, चिर रचयिता चख रहा ! देही नहीं स्वामी रही, मोही नहीं ममता रही; चंचल कहाँ अब रति रही, गति अवाधित […] Read more » हुआ अनुरक्त आत्मा चल रहा हो मुक्त बुद्धि से