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ताजमहल अथवा तेजोमहालय का मामला पुनः न्यायालय की शरण में

नीलाक्ष “विक्रम”

 

 

दुनिया को दीवाना बनाने वाला ताजमहल मुगलिया तामीर की मिसाल है या फिर प्राचीन शिव मंदिर। सालों पुराना यह विवाद एक बार पुनः न्यायालय की शरण अर्थात फिर अदालत की चौखट तक पहुंच गया है। ताजमहल को अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर विराजमान तेजो महालय घोषित करने की याचिका आगरा में सिविल जज सीनियर डिवीजन डॉ. जया पाठक की अदालत में अप्रैल 2015 में लखनऊ के अधिवक्ता हरीशंकर जैन आदि ने दायर किया है।ताजमहल को शिवालय घोषित कराने के लिए आगरा में सिविल जज सीनियर डिवीजन डॉ. जया पाठक के न्यायालय में मूल वाद दायर करने के मामले में लखनऊ के अधिवक्ता हरीशंकर जैन के साथ लखनऊ के अधिवक्ता अखिलेंद्र द्विवेदी, सुधा शर्मा, राहुल श्रीवास्तव, पंकज कुमार वर्मा और रंजना अग्निहोत्री भी वादी हैं। हरीशंकर जैन के वकील राजेश कुलश्रेष्ठ के मुताबिक वाद में केंद्रीय गृह मंत्रालय, संस्कृति मंत्रालय और एएसआइ को प्रतिवादी बनाते हुए कहा गया है कि ताजमहल पूर्व में तेजो महालय मंदिर के नाम से था। याचिका के मुताबिक माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने मथुरा में कालिया नाग को नाथा था, जिसके बाद कालिया नाग आगरा में इसी जगह आकर छिपा।1212 ईस्वी में राजा परमार्दी देव ने यहां तेजोमहालय के नाम से मंदिर निर्माण कराया। जिसमें अग्रेश्वर महादेव नाग नाथेश्वर विराजमान कराए गए। समय गुजरने के बाद आगरा परमार्दी देव के वंशज जयपुर के राजा मानसिंह के पौत्र जयसिंह के अधिकार क्षेत्र में आया। इसके बाद मुगल बादशाह शाहजहां ने इसे कब्जे में ले लिया। दरअसल, ताज के नीचे बने गर्भ गृह को खोलने, वहां पूजा-अर्चना की अनुमति देने और ताजमहल को शिवालय घोषित करने की मांग समय-समय पर उठती रही है।

अब अदालत ने ताजा वाद को स्वीकार करते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय, संस्कृति मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) आदि प्रतिवादियों को नोटिस जारी किए हैं और उन्हें जवाब दाखिल करने के लिए कहा गया है। मामले में जवाब दाखिल होने के बाद वाद के बिंदु तय किए जाएंगे। याची की ओर से पैरवी करने वाले अधिवक्ताओं में राजेश कुलश्रेष्ठ, माधो सिंह, हरिओम कुलश्रेष्ठ, इंद्र मोहन सक्सैना, राधाकृष्ण गुप्ता, गौरव जैन शामिल थे। ताज और तेजोमहालय को लेकर सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में दाखिल याचिका पर 13 मई बुधवार को प्रतिवादी भारत सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से वकालतनामा भी दाखिल किया गया है। प्रतिवादी भारत सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से अधिवक्ता अंजना शर्मा ने वकालतनामा पेश करते हुए अदालत से वक्त मांगा। वहीं, अप्रूव्ड गाइड एसोसिएशन के पदाधिकारी शमसुद्दीन और वीरेश्वर नाथ त्रिपाठी ने धारा 110 के तहत पक्षकार बनने को आवेदन दिया है। शमसुद्दीन का कहना है कि आगरा ही नहीं, पूरे भारत में पर्यटन का सबसे बड़ा आकर्षण ताजमहल है। इसे विवादों में न डाला जाए। ताजमहल को बाबरी मस्जिद की तरह विवादित बनाया तो इससे पर्यटन प्रभावित होगा।

 

दरअसल लखनऊ के अधिवक्ताओं ने इससे पहले ताजमहल को शिवालय घोषित कराने के लिए सिविल जज सीनियर डिवीजन की ही अदालत में लोकवाद दायर करने के लिए प्रार्थना पत्र दिया था। बीती 19 मार्च को दाखिल किए गए प्रार्थना पत्र को अदालत ने लोकवाद न मानते हुए खारिज कर दिया था।

 

taj mahalदरअसल नया विवाद का जन्म दुनिया के सात अजूबों में से एक ताजमहल को वक्फ बोर्ड के हवाले किए जाने की मांग आने के बाद से ही शुरू हुई है । आजम खान के इस बयान के बाद ताज पर एक बार पुनः राजनीति शुरू हो चुकी है, वहीं उत्तर प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने विवाद को नया मोड़ दे दिया है । वाजपेयी का दावा है कि विश्व ऐतिहासिक विरासत ताजमहल प्रचीन तेजो महालय मंदिर का हिस्सा है ।दिसम्बर 2014 में वाजपेयी का कहना था कि मुगल शासक शाहजहां ने मंदिर की कुछ जमीन को राजा जय सिंह से खरीदा था । उनका का दावा है कि इससे संबंधित दस्तावेज अभी भी मौजूद हैं । उन्होंने आरोप लगाया कि वक्फ की संपत्तियों पर कब्जा जमाए बैठे यूपी सरकार के वरिष्ठ मंत्री आजम खान की नजर अब विश्व विरासत इमारत ताजमहल पर है । उन्होंने कहा, ताजमहल में पांच वक्त की नमाज पढ़ने का आजम का सपना कभी नहीं पूरा हो पाएगा । उत्तरप्रदेश के वक्फ मंत्री आजम ने मुतवल्लियों के 13 नवंबर 2014 को हुए सम्मेलन में कहा था कि वह राज्य सुन्नी केंद्रीय वक्फ बोर्ड से कहेंगे कि वह ताजमहल को बोर्ड की संपत्ति बनाए और उन्हें उसका मुतवल्ली नियुक्त कर दें । इसके बाद आगरा के एक संगठन ‘इमाम ए रजा’ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मांग की कि ताजमहल को वक्फ की संपत्ति घोषित करें और मोहर्रम के दौरान वहां मातम की इजाजत दें । हालांकि, शियाओं के प्रमुख धर्मगुरुओं ने ताज को शिया वक्फ बोर्ड की संपत्ति माने जाने की मांग को खारिज करते हुए कहा कि विश्व विरासत इमारतों को ऐसे विवादों से दूर रखना चाहिए ।

 

ध्यातव्य हो कि ताज को लेकर वैधानिक कार्रवाई कोई नहीं हैं और पूर्व में भी इस मामले को लेकर न्यायालय के दरवाजे खटखटाए जाते रहे हैं ।सर्वप्रथम इस मामले को लेकर वैधानिक प्रतिक्रियास्वरुप लोकख्यात इतिहासकार पी एन ओक ने याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने ताज को एक हिन्दू स्मारक घोषित करने एवं कब्रों तथा सील्ड कक्षों को खोलने, व यह देखने कि उनमें शिव लिंग, या अन्य मन्दिर के अवशेष हैं, या नहीं; की अपील की। उनके अनुसार भारतीय सरकार के इस कृत्य की अनुमति न देने का अर्थ सीधे-सीधे हिन्दू धर्म के विरुद्ध षड्यन्त्र है। सन 2000 में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने ओक की इस याचिका को कि ताज को एक हिन्दू राजा ने निर्माण कराया था रद्द कर दिया और साथ ही इन्हें झिड़की भी दी, कि उनके दिमाग में ताज के लिये कोई कीड़ा है। सन 2005 में ऐसी ही एक याचिका इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा भी रद्द कर दी गयी, जिसमें अमरनाथ मिश्र, एक सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा यह दावा किया गया था, कि ताज को हिन्दू राजा परमार देव ने 1196 में निर्माण कराया था।

 

दरअसल ताजमहल या तेजो महालय के इस विचार का मूल इतिहासकार पी एन ओक के द्वारा लिखी गई ऐतिहासिक व पुरातात्विक अनुसंधान पर आधारित उनकी अनेक पुस्तकें हैं , जिनमे ताजमहल के साथ ही भारतवर्ष की कई अन्य स्थलों के बारे में भारतीय परम्परा में लिखी गई इतिहास की विषयवस्तु व कथ्य ही हैं । अपनी पुस्तक ताजमहल: सत्य कथा में, ओक ने यह दावा किया है, कि ताजमहल, मूलतः एक शिव मन्दिर या एक राजपूताना महल था, जिसे शाहजहाँ ने कब्ज़ा करके एक मकबरे में बदल दिया।इस पुस्तक में ओक कहते हैं, कि कैसे सभी (अधिकांश) हिन्दू मूल की कश्मीर से कन्याकुमारी पर्यन्त इमारतों को किसी ना किसी मुस्लिम शासक या उसके दरबारियों के साथ, फेर-बदल करके या बिना फेरबदल के, जोड़ दिया गया है। उन्होंने हुमायुं का मकबरा, अकबर का मकबरा एवं एतमादुद्दौला के मकबरे, तथा अधिकांश भारतीय हिन्दू ऐतिहासिक इमारतों, यहाँ तक कि काबा, स्टोनहेन्ज व वैटिकन शहर। तक हिन्दू मूल के बताये हैं। ओक का भारत में मुस्लिम स्थापत्य को नकारना, मराठी जग-प्रसिद्ध संस्कृति का अत्यन्त मुस्लिम विरोधी अंगों में से एक बताया गया है। के०एन०पणिक्कर ने ओक के भारतीय राष्ट्रवाद में कार्य को भारतीय इतिहास की साम्प्रदायिक समझ बताया है। तपन रायचौधरी के अनुसार, उन्हें संघ परिवार द्वारा आदरणीय इतिहासविद कहा गया है।ओक ने दावा किया है, कि ताज से हिन्दू अलंकरण एवं चिह्न हटा दिये गये हैं और जिन कक्षों में उन वस्तुओं एवं मूल मन्दिर के शिव लिंग को छुपाया गया है, उन्हें सील कर दिया गया है। साथ ही यह भी कि मुमताज महल को उसकी कब्र में दफनाया ही नहीं गया था।

 

इन दावों के समर्थन में, ओक ने ताज की यमुना नदी की ओर के दरवाजों की काष्ठ की कार्बन डेटिंग के परिणाम दिये हैं, यूरोपियाई यात्रियों के विवरणों में ताज के हिन्दू स्थापत्य/वास्तु लक्षण भी उद्धृत हैं। उन्होंने यहाँ तक कहा है, कि ताज के निर्माण के आँखों देखे निर्माण विवरण, वित्तीय आँकड़े, एवं शाहजहाँ के निर्माण आदेश, आदि सभी केवल एक जाल मात्र हैं, जिनका उद्देश्य इसका हिन्दू उद्गम मिटाना मात्र है।

 

पी०एस० भट्ट एवं ए०एल० अठावले ने “इतिहास पत्रिका ” (एक भारतीय इतिहास पुनरावलोकन संस्थान के प्रकाशन) में लिखा है, कि ओक के लेख और सामग्री इस विषय पर, कई सम्बन्धित प्रश्न उठाते हैं। ताजमहल के हिन्दू शिवमन्दिर होने के पक्ष में ओक के अपने मजबूत तर्क हैं।

पी०एन० ओक अपनी पुस्तक “ताजमहल ए हिन्दू टेम्पल” में सौ से भी अधिक कथित प्रमाण एवं तर्क देकर दावा करते हैं कि ताजमहल वास्तव में शिव मन्दिर था जिसका असली नाम ‘तेजोमहालय’ हुआ करता था। ओक साहब यह भी मानते हैं कि इस मन्दिर को जयपुर के राजा मानसिंह (प्रथम) ने बनवाया था जिसे तोड़ कर ताजमहल बनवाया गया। इस सम्बन्ध में उनके निम्न तर्क विचारणीय हैं-

 

किसी भी मुस्लिम इमारत के नाम के साथ कभी महल शब्‍द प्रयोग नहीं हुआ है।

‘ताज’ और ‘महल’ दोनों ही संस्कृत मूल के शब्द हैं।

संगमरमर की सीढ़ियाँ चढ़ने के पहले जूते उतारने की परम्परा चली आ रही है जैसी मन्दिरों में प्रवेश पर होती है जब कि सामान्यतः किसी मक़बरे में जाने के लिये जूता उतारना अनिवार्य नहीं होता।

संगमरमर की जाली में 108 कलश चित्रित हैं तथा उसके ऊपर 108 कलश आरूढ़ हैं, हिंदू मन्दिर परम्परा में (भी) 108 की संख्या को पवित्र माना जाता है।

ताजमहल शिव मन्दिर को इंगित करने वाले शब्द ‘तेजोमहालय’ शब्द का अपभ्रंश है। तेजोमहालय मन्दिर में अग्रेश्वर महादेव प्रतिष्ठित थे।

ताज के दक्षिण में एक पुरानी पशुशाला है। वहाँ तेजोमहालय के पालतू गायों को बाँधा जाता था। मुस्लिम कब्र में गौशाला होना एक असंगत बात है।

ताज के पश्चिमी छोर में लाल पत्थरों के अनेक उपभवन हैं जो कब्र की तामीर के सन्दर्भ में अनावश्यक हैं।

संपूर्ण ताज परिसर में 400 से 500 कमरे तथा दीवारें हैं। कब्र जैसे स्थान में इतने सारे रिहाइशी कमरों का होना समझ से बाहर की बात है।