तीस्ता सीतलवाड और विनायक सेन- किस्सा एक तमाशे दो

डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

डॉ. विनायक सेन को सेशन न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। विनायक सेन जेल में हैं। उन्होंने इस निर्णय के खिलाफ अपील की तो की ही है साथ ही छत्तीसगढ़ के उच्च न्यायालय में जमानत की अर्जी भी दाखिल की थी।

पिछले दिनों न्यायालय ने उनकी जमानत की अर्जी खारिज कर दी है। अपील का निर्णय क्या होता है यह तो बात में ही पता चलेगा। इसी प्रकार गुजरात में कब्रों में बिना अनुमति के शव निकालने के एक मामले को लेकर तीस्ता सीतलवाड ने गुजरात के एक न्यायालय में अग्रिम जमानत के लिए अर्जी दाखिल की थी जिसे न्यायालय ने स्वीकार कर लिया है। ये दोनों केस लगभग न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। लेकिन विनायक सेन की सजा को लेकर कुछ खास किस्म के लोगों ने हाय तोबा मचाना शुरु कर दिया है। उनका कहना है कि विनायक सेन को जो सजा मिली है वह ठीक नहीं है। न्यायालय ने एक गलत निर्णय दिया है और बोलने की स्वतंत्रता का इस निर्णय से हनन होता है। बात आगे बढ़ाने से पहले यह जान लिया जाए कि विनायक सेन पर आरोप क्या थे। छत्तीसगढ़ में माओवादियों के रूप में आतंकवादी पिछले कई सालों से गांव में वनवासियों का कत्लेआम मचाए हुए हैं। गांव में विकास का कोई काम नहीं होने दिया जा रहा है। वहां की परम्पराओं और विरासत को समाप्त किया जा रहा हैं। माओवादी स्कूलों को विशेष तौर पर निशाना बना रहे है ताकि नई पीढ़ी शिक्षा के ज्ञान से वंचित रह जाए और स्वःविवेक के आधर पर निर्णय करने की क्षमता खो बैठे। जन न्याय के नाम पर बच्चों के सामने माता-पिता की हत्या की जा रही हैं और माता पिता के सामने बच्चों को मारा जा रहा हैं। माओ आतंकवादियों ने अनेक स्थानों पर विस्फोटों के माध्यम से सैंकड़ों पुलिसकर्मियों को मौत के घाट उतार दिया है। यह सब कुछ सर्वहारा का स्वर्ग बनाने के लिए किया जा रहा हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि माओ इस स्वर्ग के प्रेरणास्रोत हैं। जाहिर है कि माओ आतंकवादी माओं से भी पहले कार्लमार्क्स की पोथियों का भी अपने सशस्त्र आन्दोलन के लिए सहारा लेते हैं। ये मार्क्स ही थे जिन्होंने सर्वहारा की सत्ता की स्थापना के लिए सम्पन्न वर्ग की हत्या की वकालत की थी। लेकिन कार्लमार्क्स के नाम पर शुरु हुई सशस्त्र क्रान्ति धीरे धीरे आतंकवादियों के उस गिरोह में बदल गई जिसने सम्पन्न वर्ग को छोड़कर सर्वहारा वर्ग में ही अपने विरोधियों को निर्दयता से मारना शुरु कर दिया। जाहिर है कि विदेशी सहायता और शस्त्रों के बल पर लड़ी जा रही यह लड़ाई वर्ग संघर्ष न रहकर चर्च के तालमेल से भारत को खण्डित करने का एक विदेशी षड्यंत्र बन गया और वर्ग संघर्ष करने का दावा करने वाले तथाकथित क्रांतिकारी इन षड्यंत्राकारियों के हाथों का खिलौना बन गए।

डॉ. विनायक सेन इन्हीं माओ आतंकवादियों के लिए कुरियर का काम कर रहे थे। वे विभिन्न गुटों के संदेश एक दूसरे को पहुंचा रहे थे। ताकि आतंकवादी आपसी तालमेल से बेहतर संरचना का निर्माण कर सकें। डॉ. सेन को शायद लगता होगा कि उनके ऊँचे रुतबे के कारण पुलिस का ध्यान उनकी ओर नहीं जाएगा। यदि गया भी तो पुलिस उनको आरोपित करने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगी। इसीलिए वे लम्बे अर्से से इन आतंकवादियों के संदेश एक दूसरे तक पहुंचाया करते थे और अपने रुतबे के कारण जेल में बार-बार उनसे सम्पर्क भी बनाते रहते थे। अन्ततः वे पकड़े गए। उन पर मुकद्मा चला और उन्हें उम्रकैद हुई। इस प्रक्रिया से इतना स्पष्ट है कि डॉ. सेन विचार स्वतंत्रता के लिए लिखने पढ़ने के काम में नहीं लगे हुए थे। बल्कि आतंकवादियों की हत्याओं की साजिश में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे। लेकिन जैसे ही उन्हें सजा सुनाई गई तो उनके अनेक हिमायती अपना मुखौटा उतार कर उनके समर्थन में उतर आए और न्यायालय के निर्णय को लेकर ही, जितना हो सकता था उतनी सभ्य भाषा में, गाली गलौज करने लगे। डॉ. सेन को और उनके हिमायतियों को पूरा अधिकार है कि वे इस निर्णय को अगले न्यायालय में चुनौती दे। यह उनका अधिकार र है कि और उन्होंने इसका प्रयोग भी किया है। लेकिन वे न्यायालय के निर्णय को मीडिया ट्रायल से प्रभावित करने का असंवैधनिक कार्य कर रहे हैं। उन्होंने इस निर्णय के खिलाफ व्यवहारिक तौर पर एक आन्दोलन ही छेड़ दिया है और ताजुब्ब है कि उनके इस आन्दोलन में बड़ी कचहरी के एक रिटायर्ड जज भी शामिल हो गए हैं।

इस पूरे आन्दोलन का अर्थ क्या है? इस जुडे़ लोग क्या कहना चाहते हैं? उनकी दृष्टि में न्यायिक प्रक्रिया तभी तक सही है जब तक उनके पक्ष में निर्णय आता रहता है। जब न्यायालय का निर्णय उनकी इच्छाओं की विपरीत आता है तो उनकी दृष्टि में सारी प्रक्रिया ही पक्षपाती हो जाती है। मानवाधिकार पंथ निरपेक्षता, बुद्धि्जीवी, चिंतक इत्यादि होने के रंग बिरंगे चोगे पहनकर चालीस पचास लोगों की यह बारात सारे देश की व्यवस्था को हस्तगत करना चाहती है। इस काम के लिए वह अन्य वैचारिक प्रतिष्ठानों के लिए अलग-अलग पफतवे जारी करती रहती है। यदि विनायक सेन की सजा और छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय द्वारा उनकी जमानत की जांच का रद्द किया जाना गलत है तो तीस्ता सीतलवाड को चोरी छिपे कब्रिस्तानों में से लाशें निकालने के मामले में न्यायालय द्वारा दी गई अग्रिम जमानत का फैसला कैसे सही है? तीस्ता सीतलवाड की अग्रिम जमानत से ही और विनायक सेन की जमानत खारिज होना गलत-इस प्रकार के फतवों से इस मण्डली का दोहरापन तो उजागर होता ही है साथ ही उनकी मंशा पर भी सवाल उठने लगते हैं। अरुन्ध्ती राय ने कहा था कि कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं है बल्कि भारत ने उस पर बलपूर्वक कब्जा किया हुआ है। देश ने उनके इस प्रलाप को भी विचार स्वतंत्राता मानकर स्वीकार कर लिया। और सरकार ने उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही नहीं की। विनायक सेन माओ आतंकवादियों के विचारों को लेकर या फिर उनकी कार्य प्रणाली को लेकर न तो भाषण कर रहे थे और न ही लेख लिख रहे थे। बल्कि वे उसमें एक सक्रिय भागीदारी निभा रहे थे। सक्रिय भागीदारी कानून की दृष्टि में अपराध है, विचार स्वतंत्रता नहीं।

विनायक सेन के पक्ष में इस मण्डली द्वारा जो दूसरा तर्क दिया जा रहा है वह पहले से भी ज्यादा हास्यस्पद है। मण्डली का कहना है कि सेन का शैक्षिक रिकार्ड अति उत्तम है और वे निःशुल्क गरीबों का इलाज करते रहे हैं। उनके यह गुण उनके अपराध् कर्म को कैसे झुठला सकते हैं, यह ये तथाकथित चिंतक ही बता सकते हैं। वैसे यह भी सुना गया है कि हाजी मस्तान भी जो पैसा गलत ढंग से कमाया करते थे उसका एक हिस्सा गरीबों को बांट दिया करते थे। क्या इसका अर्थ ये लिया जाए कि गरीबों में पैसा बांटने के कारण हाजी मस्तान को उनके अपराधें से मुक्त घोषित कर दिया जाए? वैसे सुना यह भी गया है कि तीस्ता सीतलवाड से जुडे़ लोग ही विनायक सेन की सजा का सबसे ज्यादा विरोध् कर रहे हैं और दूसरी ओर वे तीस्ता सीतलवाड को अग्रिम जमानत मिल जाने पर खुशियां भी मना रहे हैं। चित्त भी अपनी और पट भी अपनी।

2 COMMENTS

  1. “जीतला के आगे आ हारला के पीछे”. दोगले चरित्र के लोग ऐसे सिद्धांत पर चलते हैं. तीस्ता सीतलवाड ब्राण्ड लोग एक तरफ हमारी न्याय प्रणाली के उदारता का भरपुर दुरुपयोग करते है. तथा जब न्याय प्रणाली के संपादन किया गया कोई काम उनके हित के विरुद्ध होता है तो वह न्यायपालिका की अवहेलना करने से नही चुकते. ऐसे लोग समाज एवम देश के लिए खतरा हैं.

  2. यह तो सत्य है की सेन को आज तक जनता का समर्थन नहीं मिला यदि वे वास्तव मैं समाज से जुरे हैं तो जिस समाज से वे जुरे हैं उसने उनकी वकालत क्यों नहीं की. यह कम मीडिया या परदे के पेचे से ही क्यों हो रहा है.

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