गांधीजी की हत्या और उसकी जांच

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मनोज ज्वाला

महात्मा गांधी की हत्या के लिये रामचंद्र विनायक गोडसे उर्फ नाथूराम गोडसे को 500 रुपये में बीस गोलियों के साथ एक नया बैरेटा पिस्टल उपलब्ध करानेवाले होम्योपैथिक डॉक्टर जगदीश प्रसाद गोयल उर्फ दत्तात्रेय परचुरे के विरुद्ध आजतक कोई कार्रवाई न होने तथा गोली लगने के बाद गांधीजी को अस्पताल न ले जाकर बिड़ला भवन में रखे रहने और उनके शव का पोस्टमार्टम नहीं कराये जाने से उस मामले की जांच की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े होते रहे हैं। हालांकि इस मामले की अदालती प्रक्रिया का पटाक्षेप दशकों पूर्व हो चुका है। हत्या के दोषी नाथूराम गोडसे के साथ उसके परोक्ष साझेदार नारायण आप्टे को फांसी और विष्णु करकरे व तीन अन्य को षड्यंत्र में सहयोग का दोषी सिद्ध करते हुये आजीवन कारावास की सजा दी गयी। किन्तु इस हत्याकांड से जुड़े कई ऐसे पहलुओं की जांच ही नहीं की गयी या नहीं होने दी गयी, जिनसे कुछ विशिष्ट लोग भी दोषी सिद्ध हो सकते थे।गांधीजी की हत्या की तारीख से दस दिनों पहले 20 जनवरी 1948 को भी उनकी हत्या के लिए दिल्ली स्थित बिड़ला भवन के उनके प्रार्थना स्थल के निकट बम विस्फोट किया गया था। हमले में गांधीजी बाल-बाल बच गये; जबकि बम रखनेवाला मदनलाल पाहवा नामक शरणार्थी पुलिस के हाथों गिरफ्तार कर लिया गया। पाहवा ने महात्मा जी की हत्या को लेकर सक्रिय उसके साथियों के षड्यंत्र का खुलासा भी पुलिस के समक्ष कर दिया था। जिन षड्यंत्रकारियों के नाम पाहवा ने पुलिस को बताये थे, उनमें से प्रत्येक को दिल्ली-बम्बई-पुणे की पुलिस जानती थी। उन्हीं लोगों ने बाद में गांधीजी की हत्या को अंजाम भी दिया। किन्तु जिन लोगों को षड्यंत्र की पूर्व जानकारी मिल गयी और जो लोग उसे नाकाम करने में सक्षम थे, उन्होंने महात्मा जी को पर्याप्त सुरक्षा उपलब्ध कराने की दिशा में खास पहल नहीं की। और तो और, बिड़ला भवन परिसर में उनकी सुरक्षा के लिये पहले से तैनात पुलिस के मुख्य अधिकारी को भी 30 जनवरी को किसी प्रशासनिक बैठक के निमित्त वहां से हटा दिया गया था। बावजूद इसके, षड्यंत्र के इन तमाम जानकारों को जांच की परिधि और संदेह के दायरे से दूर रखा गया। गांधीजी की हत्या में हिन्दू महासभा के नेता विनायक दामोदर सावरकर को तो गांधीजी का प्रबल विरोधी होने और गोडसे आदि से सम्बन्ध-सरोकार रखने के आधार पर जांच अधिकारियों ने आरोपित कर दिया किन्तु गांधीजी के विरोधी दूसरे प्रभावशाली लोग भी थे। गांधीजी की तत्कालीन राजनीति व कार्ययोजना से कांग्रेस के कई बड़े नेता उनके प्रबल विरोधी बने हुए थे।महात्माजी के महात्म्य के सहारे सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे नेता, आजाद भारत के शासन में आते ही महात्माजी के ‘हिन्द-स्वराज’ नामक देसी चिन्तन-दर्शन को बड़ी बेरुखी से खारिज कर उनके सपनों के विरुद्ध भारत में लोकतांत्रिक-समाजवाद नामक विदेशी व्यवस्था कायम करने पर अड़े हुए थे। उसी दौरान सरकार में शामिल कांग्रेसी नेताओं के भ्रष्ट आचरण पर क्षोभ जताते हुए महात्माजी ने जब यह सिफारिश कर दी कि “देश को आजादी दिलाने का उद्देश्य पूरा हो गया, सो अब कांग्रेस का एक राजनीतिक संगठन के रूप में काम करना उचित नहीं है क्योंकि देश में हरिजन उद्धार व ग्रामीण पुनर्निंर्माण के अनेक महत्वपूर्ण काम करने को हैं इसलिए कांग्रेस को भंगकर उसे ‘लोकसेवक संघ’ बना दिया जाये तो नेहरू जी ने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया था। तब भी महात्मा जी अपने स्तर से कांग्रेस के विसर्जन की घोषणा 30 जनवरी को अपनी प्रार्थना सभा में करने की योजना बना चुके थे।जाहिर है महात्मा जी कांग्रेसी नेताओं के क्रियाकलापों से न केवल असहमत रहने लगे थे बल्कि सत्ता मिलते ही कांग्रेस की कार्य संस्कृति में घुस आये भ्रष्टाचार की सार्वजनिक मुखालफत भी करने लगे थे। महात्माजी के जीते-जी उनकी नीतियों की हत्या करनेवालों ने उनकी हत्या के बाद खुद को उनका उतराधिकारी-भक्त प्रदर्शित करने तथा राजनीतिक लाभ के लिए शासनिक शक्ति के सहारे सावरकर और संघ का नाम आरोपित करवा दिया। सावरकर को जेल में डलवा दिया और संघ पर प्रतिबन्ध लगवा दिया। हालांकि न्यायालय ने सावरकर को आरोप मुक्त कर दिया और संघ को भी प्रतिबन्ध से मुक्त कर दिया, किन्तु दोनों के विरुद्ध जो दुष्प्रचार किया गया उसका राजनीतिक लाभ कांग्रेस आजतक लेती रही है । “सफेद-आतंकः ह्यूम से माईनो तक” नामक मेरी पुस्तक में इस मुद्दे पर व्यापक बहस-विमर्श है। परिस्थिति-जन्य साक्ष्य बताते हैं कि कांग्रेस का सत्तालोलुप शीर्ष नेतृत्व और उसके हाथों सत्ता हस्तांतरित करने वाले ब्रिटिश वायसराय, दोनों को महात्मा जी दो कारणों से चुभ रहे थे। एक को कांग्रेस भंग कर देने की उनकी योजना, दूसरे को देश-विभाजन की रेखा मिटा देने की उनकी तैयारी के कारण।मालूम हो कि महात्मा जी देश-विभाजन से उत्पन्न हिंसक-उन्मादी हालात की वजह इस कदर मर्माहत थे कि वे विभाजन रेखा मिटा देने के लिए पचास मील लम्बा जुलूस लेकर पाकिस्तान जाने, वहां कुछ दिन रहने और फिर उतने ही लम्बे जुलूस के साथ भारत वापस आने की गुप्त योजना के क्रियान्वयन की तैयारी कर चुके थे। उनकी इस योजना का संक्षिप्त खुलासा ‘लॉपियर एण्ड कॉलिन्स’ की पुस्तक ‘फ्रीडम ऐट मिडनाइट’ में हुआ है, जिसके अनुसार अगर वे सफल हो जाते तो विभाजन मिट सकता था। ऐसी परिस्थितियों में गांधी जी की हत्या की जांच नहीं हुई और जांच प्रक्रिया को पक्षपातपूर्ण तरीके से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व सावरकर की ओर घुमाकर दिग्भ्रमित कर दिया गया।

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  1. मनोज ज्वाला जी का नवीनतम राजनीतिक निबंध, गांधीजी की हत्या और उसकी जांच, कांग्रेस-मुक्त भारत का स्वप्न देखते न जाने कितने भारतीयों के विचारों की प्रतिध्वनि है! उन्हें मेरा साधुवाद|

    विदेशी प्रशासन लाभार्थ फिरंगियों ने २८ दिसम्बर १८८५ को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की रचना की थी तभी से यह अंग्रेजी सांप परिस्थिति-वश उससे जब कभी जुड़े राष्ट्रवादी लोगों को केंचुली की भांति एक एक कर दूर करता १९४७ में तथाकथित स्वतन्त्र देश पर दशकों सत्तारूढ़ रहने के पश्चात—न मानों मेरी, पर सांप को न भी देखो उसकी लकीर को तो देखो, कितनी विषैली है!—आज भी भारतीय राजनीति और समाज को डस रहा है| किसी रोग के केवल लक्षण दूर करना अथवा रोग को ही जड़ से निकाल फेंकना दो विभिन्न क्रियाएं हैं| यदि हम नेहरु-कांग्रेस को फिरंगी द्वारा लगाया रोग कहें तो देश-विभाजन से लेकर आज तक भारतीय समाज में सभी आर्थिक, सामाजिक, व राजनीतिक विकार इस रोग के लक्षण ही हैं| क्योंकि दशकों से लगे इस रोग से प्रभावित हमारा विवेक व व्यवहार भी रोग के लक्षण हैं, युगपुरुष मोदी भारत से इस रोग को ही मिटाने हेतु देश में कांग्रेस-मुक्त वातावरण चाहते हैं| इस कारण हमें पहले पहल रोग को समझना होगा, उदाहरणार्थ, रोग की परिभाषा, शब्दावली (आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक), कारक (विदेशी षड्यंत्र, दासत्व, व्यक्तिगत तृष्णा, इत्यादि), वर्गीकरण (सामाजिक भेद-भाव, राजनीतिक महा-गठबंधन), उपचार (राष्ट्रवाद, राष्ट्रप्रेम, परस्पर सद्भावना, परानुभूति, इत्यादि), और रोग का अध्ययन|

    गांधीजी की हत्या और उसकी जांच परिभाषित करते नेहरु-कांग्रेस रूपी रोग का अध्ययन व्यक्तिगत ढंग से नहीं बल्कि महाविद्यालयों व अनुसंधान केन्द्रों में संगठित वातावरण में किया जाए ताकि रोग के कारक और उसके भांति भांति के वर्गीकरण को समझते राष्ट्रीय शासन के साथ मिल कांग्रेस-मुक्त भारत का पुनर्निर्माण (उपचार) किया जा सके|

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