राजनीति

चुनौतियों से मुंह चुराती कॉंग्रेस

राष्ट्र के समक्ष अनेक चुनौतियां पेश हैं। राष्ट्रीय के जन जीवन में भस्मासुर बेकाबू मँहगाई, नौजवानों के मध्य व्याप्त बेरोजगारी, कश्मी्र घाटी से लेकर पूर्वोत्तर तक विस्तरित वहशियाना आतंकवाद और दंडकारण्‍य में दुर्दान्त नक्सवलवाद आदि प्रमुख तौर पर विद्यमान हैं। देश की सरहदों पर चीन और पाकिस्तान की ओर से प्रस्तुत चुनौती कायम है। दुनिया के रंगमंच पर भारत यक़ीनन एक उभरती हुई आर्थिक शक्ति है। चीन और पाकिस्तान के विपरीत प्रजातांत्रिक भारत ने अत्यंत कामयाबी के साथ पंद्रह आम चुनाव संपन्न कराए हैं। अफ्रीका और लेटिन अमेरीका के मुल्कों के मुकाबले बहुत बेहतरी के साथ हमारे वतन की आर्थिक विकास दर नौ फीसदी पंहुच चुकी है। लेकिन जैसा कि महान चिंतक एडल्सर हक्सीले ने ताजमहल के विषय में कहा था कि इसके संगमरमर के पथ्थरों की चमक दमक में असंख्य गुनाह दफ़न है। हमारे राष्ट्रं की राजनीतिक और आर्थिक उपलब्धियों के मध्य भयावह खामियों खराबियों पर सुनहरा परदा पड़ जाता है। हमारे देश में विभिन्न् वर्गो के बीच संपन्नकता और जीवन स्तर के सवाल पर स्तब्ध‍ कर देने वाली विषमताएं विद्यमान हैं। हमारे देश में थर्ड ग्रेड की शिक्षा व्य‍वस्था और पांचवे ग्रेड की स्वास्थ्य व्यवस्था कायम है। समूचे दंडकारण्य के चौदह राज्यों में नक्सीली बगावत का तांडव है, तो पूर्वोत्तयर में पृथकतावाद का बिगुल बज रहा है। कश्मीर घाटी मे जेहाद दनदना रहा है। देश के अन्नपदाता भाग्यहविधाता किसानों की पांतों में खुदकुशी रूकने को तैयार नहीं है। शहरों अपराध का ग्राफ अपने सभी पुराने रिकार्ड को तोड़ रहा है। शासकीय भ्रष्टाचार अपनी पुरानी परिभाषा को ताक़ पर रख कर कुछ नए आयाम कायम करने में जुटा हुआ है। हाल ही में कामनवैल्थ गेम्स। आयोजन से लेकर करगिल शहीदों के नाम पर कायम हुई मुबंई की आदर्श कालोनी के अरबों खरबों रूपयों के भष्ट्राचार ने समस्त देश को हतप्रभ कर दिया।

देश के इन तमाम हालातों के दरम्या्न देश की राजधानी में सत्ताशीन नेशनल कॉंग्रेस पार्टी के एआईसीसी अधिवेशन में जिस तरह का नीतिगत रैवया बाकायदा पेश किया जाता है, वह तो बेहद अचंभित करने के साथ नैराश्य भाव उत्पिन्न करता है। आजादी के ठीक पश्चात भारत एक अत्यंत दुष्कर हालात में फंसा हुआ था। 1948 महात्मा गॉंधी की अचानक हत्या हो गर्इ, देश को जबरदस्त सांप्रदायिक हिंसक तांडव का मुकाबला करना पडा़। खाद्यान्न् की बेहद कमी थी, आक्रोशित, बदहवास और बेघरबार उजडे़ हुए लोगों का हूजूम उमडा़ हुआ था। देशी राजा महाराजा अपनी हैसियत बरक़रार बनाए रखना चाहते थे। किंतु राष्ट्रीय कॉंग्रेस में तपे तपाए नेताओं का एक समूह विद्यमान था, जिसमें कि केंद्र में जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आज़ाद थे तो राज्यों में सी राजगोपालाचार्य, बीसी रॉय, बीजी खेर, गोविंदबल्लंभ पंत सरीखे नेता विद्यमान थे, तो लोक प्रशासन में मृदुला साराभाई एवं कमलादेवी चट्टोपाध्या,य जैसी शख्सियतें मौजूद थी। इन महान् व्याक्तित्वोंप ने टुकडों में विभाजित राष्ट्र को एकजुट किया और प्रगति राह पर अग्रसर किया। संक्षेप में बयान करें तो कडे़ प्रतिद्वंद्वियों की नेशनल कॉंग्रेस की नेतृत्वंकारी टीम ने हिंदुस्तान को प्रजातांत्रिक और एकीकृत तौर पर तशकील किया। अपने आपसी मतभेदों का ताक़ पर रखकर 1947 से 1950 के मध्य पं0 जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल ने जिस तरह एकजुट होकर काम किया, वह इतिहास में एक मिसाल बन गया। कॉंग्रेस नेतृत्वे ने राष्ट्रीय चुनौतियों से मुख नहीं मोडा़, वरन् उनको ललकारा और डटकर मुकाबला किया।

इसके ठीक विपरीत आज के दौर का कॉंग्रेस नेतृत्वं चुनौतियों का सामना करने के जगह् उनसे मुंह फेर कर एक नितांत पलायनवादी रूख इख्त्यार करने पर आमादा है। दहकते सुलगते कश्मीर के ज्वलंत प्रश्न पर कॉंग्रेस ने विगत कुछ महीनों बहुत बेरूखी का परिचय दिया। जम्मू – कश्मीर के वजीर उमर अब्दुल्लाद के बहेद विकृत गैर जिम्मे्दाराना बयान को कॉग्रेस ने कंडोन नहीं किया, जबकि उन्होने यह कहा कि कश्मीर का भारत में कदाचित मर्जर (संविलयन) नहीं हुआ, वरन् महज़ एनैक्सेरशन हुआ है। कश्मीर मसले पर आला वार्ताकार दल का गठन करते हुए, वार्ताकारों की सलाहियत के साथ ही उनकी राजनीतिक हैसियत पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। आल इंडिया कॉंग्रेस कमेटी के अधिवेशन के दौरान कॉंग्रेस नेतृत्व ने भ्रष्टाचार के सवाल पर आपराधिक मौन साध लिया, जबकि कश्मीर के सवाल के अतिरिक्ते सबसे अहम सवाल देश में कामनवेल्थ गेम्स के आयोजन को लेकर जारी भ्रष्टाचार रहा, जिसके तहत कॉंग्रेस से संबद्ध नेता लोग संगीन इल्जामात के शिकार बने। मंहगाई के प्रश्ने पर भी वही गैर जिम्मेदाराना और उपेक्षापूर्ण रवैया प्रदर्शित किया गया। इस टर्म में जबसे केंद्र में मनमोहन सरकार अस्तीत्व में आई है मंहगाई ने आम इंसान की जिंदगी को बेदह दुश्वार बना दिया। औसतन 17 प्रतिशत की दर से मंहगाई में निरंतर इजाफा दर्ज़ किया गया। कॉंग्रेस तो अपने एआईसीसी अधिवेशन में इस तथ्य पर अत्यंत प्रसन्न होती रही कि देश के अमीर और अब कितने अधिक अमीर हो गए हैं, उल्लेखनीय है एक वर्ष के दौरान अमीरों की कुल संपदा छ: लाख करोड से बढकर 15 लाख करोड़ हो गई और देश में 27 अरबपतियों की संख्याश अब 55 हो गई । गरीब किस तरस से अपनी जिंदगी गुजर बसर कर रहा है, इससे कॉंग्रेस को कोई सरोकार नहीं है। विगत एक वर्ष के दौरान गरीबी रेखा से नीचे जिंदगी बिताने वाले 37 करोड़ गरीबों की तादाद बढकर 40 करोड़ हो चुकी है।

नक्सकलवाद और जेहाद की चुनौतियों पर कॉग्रेस किसी सुनिश्चिुत और ठोस नीति पर अमल करने के लिए तत्पर नहीं है। बेहद लचर तौर तरीकों के कारण आतंकवाद विरोधी संग्राम अधर में लटका है। एक मृत मुद्दे को गरमाने की फि़राक में इस बार फिर कॉंग्रेस दिखाई दी। भारतीय जनमानस के मध्य रामजन्म भूमि बनाम बाबरी मस्जिद मुद्दा मृत प्राय हो चला है। उसको आधार बना कर कॉंग्रेस के नेतृत्व् ने आरएसएस को गरियाने का काम अंजाम दिया, जबकि इस मामले पर बरसों बाद आरएसएस की कयादत ने संयम का परिचय दिया। आरएसएस के कुछ कारकूनों के बम विस्फोट में संलग्नप आतंकवादियों से निकटता के आधार पर समूची आरएसएस को आतंकवादी करार देने का प्रयास करती हुई कॉंग्रेस नजर आई। ताजपोशी के तैयार कॉग्रेस के युवराज राहुल गॉंधी ने सिम्मी को और आरएसएस को एक तराजू में तोल ही दिया है। बस इसी फॉर्मूले पर कॉंग्रेस ने काम करने के लिए कमर कस ली है। अभी तक यह तथ्य किसी तरह सिद्ध नहीं किया जा सका है कि आरएसएस बाकायदा नीतिगत तौर पर हिंदू आतंकवाद की पृष्ठभूमि का निर्माण करने में जुटी है। क्यू कॉंग्रेस के ही कुछ नेताओं के भयावह शासकीय भ्रष्टाचार में शमुलियत के मद्देनज़र यह कहा जा सकता है कि समूची कॉंग्रेस शासकीय भ्रष्टमता की नीति पर अमल दरामद हो चली है। क्या् कुछ साम्यवादी नेताओं के नक्सलवादियों के साथ संबधों और सहानूभूति के आधार पर क्या यह कहा जा सकता है कि समूची साम्यवादी पार्टी ही नक्सलवादी है। यह अपवाद स्वरूप है कि कुछ आरएसएस के कारकूनों के आतंकवादियों के साथ संबंध सूत्र पाए गए हैं। महज असल सवालों से जनमानस का ध्यान विचलित करने की गरज से एक संजीदा पार्टी नेशनल कॉंग्रेस एक बहुत गैर जिम्मेदाराना आचरण करती प्रतीत हो रही है। कॉंग्रेस के पास यदि आरएसएस के आतंकवादी होने के पुख्ता सबूत मौजूद हैं तो वह केंद्र में सत्‍तानशीन है और सिम्मी की तरह आरएसएस को गैर कानूनी घोषित करने का साहस प्रदर्शित करे अथवा इस प्रलाप को महज़ कॉंग्रेस से बरसों से नाराज़ मुस्लिम वोट बैंक का रिझाने लुभाने का सस्ता नुस्खा़ ही क़रार दिया जाएगा। बेहतर है कि कॉंग्रेस अपने महान् ऐतिहासिक नेताओं के चरित्र से कुछ सबक हासिल करे और उनकी महान् विरासत को मन मे संजोकर, राष्ट्रे के समक्ष प्रस्तुत चुनौतियों का डटकर मुकाबला करे, ना कि अनर्गल प्रलाप करके समस्यायओं से जनमानस का ध्यान भटकाने की अवसरवादी नीति को अपनाने की गलती अंजाम दे।

– प्रभात कुमार रॉय

पूर्व प्रशासनिक अधिकारी