जिन्ना को लेकर उठा विवाद

jinnahजिन्ना को लेकर भारत में एक बार फिर विवाद शुरू हो गया है। दरअसल जब तक भारत और पाकिस्तान के बीच कृत्रिम विभाजन विद्यमान रहेगा तक तक जिन्ना पर भी चर्चा होती रहेगी। परन्तु दुर्भाग्य से पूरा विवाद इस बात पर सिमट जाता है कि विभाजन के लिए जिम्मेदार कौन था। आम तौर पर इसके लिए जिन्ना को ही दोषी ठहराया जाता है। इस दोष को ढूंढने के लिये या इस दोष को मिटाने के लिए विद्वान लोग अजायबघरों में जाकर पुरानी फाईले उलटते-पुलटते रहते हैं और फिर जैसी उनकी मंशा होती है वैसी सामग्री उन्हें वहाँ से मिल भी जाती है। अजायबघर दरअसल सब प्रकार की सामग्री का खजाना होता है। उसमें जब कोई विद्वान घुसता है तो आम तौर पर उसके मन में कोई न कोई परिकल्पना पहले से ही बनी होती है। उस परिकल्पना को पुष्ट करने के लिए जो प्रमाण उसको मिलते हैं वह उन्हें प्रसन्नता से ग्रहण कर लेता है और जो उसके विपरीत होते हैं उनको वह उतनी ही प्रसन्नता से वहीं छिपा देता है। इसलिए जब कोई विद्वान अजायबघर से बाहर निकलता है तो उसको जिस प्रकार का जिन्ना चाहिए होता है वह उसी प्रकार का लेकर प्रसन्नता से अपनी विजय की घोषणा करता है। इसलिए अकादमिक जगत में अनेक प्रकार के जिन्ना मौजूद मिल जायेंगे। परन्तु साधारण जनता किसी का आकलन करते समय अजायबघरों की दीमक लगी फाईलों पर निर्भर नहीं करती। क्योंकि उसने प्रत्येक युग के यथार्थ को स्वयं भोगा होता है। इसलिए वह अपनी राय के लिए फाईलों में सड रहे दस्तावेजों या फिर पाकिस्तान निर्माण के दिन पर दिये गये जिन्ना के तथाकथित पंथनिरपेक्ष भाषणों का सहारा नहीं लेती बल्कि अपने प्रत्यक्ष अनुभवों और भोगे गये यथार्थ के आधार पर अपनी राय बनाती है। आम जनता की राय में जिन्ना पाकिस्तान विभाजन के दोषी थे और आम जनता को यह भी पता था कि जब पाकिस्तान बन जायेगा तो हिन्दुओं और सिखों का वहाँ रहना मुश्किल हो जायेगा। नेहरू शायद इस बात को नहीं जानते थे। इस बात का शायद उन्हें अंदाजा नहीं था कि पाकिस्तान बनने के बाद उस क्षेत्र से लाखों हिन्दू सिख भाग कर इस क्षेत्र में आयेंगे और इस प्रयास में लाखों मारे भी जायेंगे। इसका कारण शायद नेहरू का पूरे आंदोलन के दौरान जमीनी सचाईयों से कटे होना भी था।

 

जिन्ना को जिन विशेषणों से अब नवाजा जा रहा है वह उनके व्यक्तित्व का हिस्सा नहीं थे। वे दरअसल पश्चिमी शिक्षा नीति से उत्पन्न हुए एक ऐसे व्यक्ति थे जो भारत की स्वतंत्रता को भी अंग्रेजी नजरिये से ही देखते थे। उनका भारत की संस्कृति या फिर यदि उनके तथाकथित मजहब का ही आधार लिया जाये तो इस्लाम की संस्कृति में भी कोई विश्वास नहीं था। वे दरअसल पश्चिम की अंग्रेजी संस्कृति के उपासक थे। एक प्रकार से पंडित जवाहर लाल नेहरू की भी यही स्थिति थी। वे भी पश्चिमी शिक्षा पद्वति से बने एक ऐसे अंग्रेज थे जो जीवन के अंत तक भारत को खोजने की कोशिश करते रहे। उनका भी भारतीय संस्कृति में कोई विश्वास नही था बल्कि वे पश्चिमी समाज के तथाकथित मूल्यों के उपासक थे। इसलिए नेहरू को हिन्दू जिन्ना कहा जा सकता है और जिन्ना तो मुस्लिम जिन्ना थे ही, यह अलग बात है कि नेहरू का हिन्दुत्व में विश्वास नहीं था और जिन्ना का इस्लाम पर भरोसा नहीं था।

शायद इसलिए दोनों ने महात्मा गांधी को अस्वीकार कर दिया था क्योंकि वे हिन्दू मूल्यों या भारतीय मूल्यों की बात करते रहते थे। परन्तु नेहरू को इस बात का श्रेय देना होगा कि उन्होंने हिन्दू परिवार में जन्म लेने के बावजूद अपने हिन्दू होने का राजनैतिक लाभ उठाने का प्रयास नहीं किया। उनका हिन्दुत्व में विश्वास नहीं था इसलिए उन्होंने उसका राजनैतिक फायदा लेने की बेईमानी भी नहीं की। परन्तु जिन्ना इसके बिल्कुल विपरीत थे। उनका इस्लाम में विश्वास तो नहीं था परन्तु उन्होंने अपने मुसलमान होने का राजनैतिक लाभ उठाया। भारत को विभाजित करने की योजना तो अंग्रेजों की थी।

(पता नहीं क्यों जसवंत सिंह को अजायबघर की फाईलें तलाशते समय यह प्रमाण क्यों नहीं मिले। बेहतर होता वे अपने मित्र नरेन्दा्र सिंह सरीला की 2005 में भारत विभाजन पर छपी पुस्तक देख लेते। ) जिन्ना जानबूझ कर अंग्रेजों के हाथों में हथियार बन गये इसमें अंग्रेजों को भारत विभाजन का अपना सपना पूरा करना था और जिन्ना को अपनी महत्वकांक्षा। कांग्रेस ने इस अन्तिम समय में आगे लडने से इंकार कर दिया और अंग्रेजों की योजना के रास्ते से अन्तिम बाधा भी समाप्त हो गई।

अब प्रश्न यह है कि जिस जिन्ना के बारे में आम राय यह है कि वह अंग्रेजों के पिट्ठू थे, अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए किसी भी सीमा तक जाने के लिए तैयार थे और मुख्य तौर पर भारत विभाजन के लिए जिम्मेदार थे उन्हें किस उद्देश्य से भारत में सर्वगुणों से महिमा मंडित करने का प्रयास किया जा रहा है ? कांग्रेस की बात तो समझ में आती है। कांग्रेस को लगता है कि यदि जिन्ना ही भारत विभाजन के दोष से मुक्त कर दिये जाते हैं तो फिर नेहरू का दोष तो उससे बहुत कम था। जिन्ना की मुक्ति के बाद वे तो अपने आप ही विभाजन के दोष से बरी हो जायेंगे। इसलिए कुछ साल पहले एशियानन्द की जिन्ना पर लिखी हुई किताब देखी जा सकती है। भारत विभाजन के दोष से नेहरू को मुक्त करने के लिए जिन्ना को मुक्त करना जरूरी है। जब यह दोनों मुक्त हो जायेंगे तो जाहिर है कि किसी तीसरे से पात्र की तलाश होगी। मुस्लिम लीग और जिन्ना तो पहले ही छूट चुके होंगे। वैसे भी साम्यवादी टोला तो 1947 से पहले भी मुस्लिम लीग को साम्प्रदायिक नहीं मानता था। हो सकता है ऐसी स्थिति में विभाजन का दोष भारत के हिन्दुओं पर ही मढने का प्रयास किया जाये। जसवंत सिंह की जिन्ना पर लिखी गई किताब को इस दृष्टि से भी जांचना परखना चाहिए।

– डॉ0 कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

16 COMMENTS

  1. मैंने पाकिस्तान के समाचार पत्रों में प्रायः ऐसे लेख पढ़े हैं जो किन्हीं कारणों ब्रिटिश-इंडिया विभाजन के विषय को सदैव बनाए रखते हैं। संभवतः इसी कारण अनवर शाहीन द्वारा संपादित पुस्तक, क़ायदे-आज़म : शख़्सियत और सियासत : जसवंत सिंह की किताब पर तबसरे, (قائد اعظم : شخصيت اور سياست : جسونت سنگھ کى کتاب پر تبصرے / ترجمه و ترتيب) लाहोर में तुरंत छप गई थी। और जहां तक प्रस्तुत निबंध, जिन्ना को लेकर उठा विवाद, में डॉ कुलदीप चंद अग्निहोत्री जी द्वारा निष्कर्ष, “हो सकता है ऐसी स्थिति में विभाजन का दोष भारत के हिन्दुओं पर ही मढ़ने का प्रयास किया जाये। जसवंत सिंह की जिन्ना पर लिखी गई किताब को इस दृष्टि से भी जांचना परखना चाहिए।” का प्रश्न है, मैं समझता हूँ कि किसी को अजायबघरों में जा कर कुछ भी ढूंढने की आवश्यकता नहीं है। उस ब्रिटिश-इंडिया क्षेत्र को आधे अधूरे इंडिया, पाकिस्तान, और बांग्लादेश नामक विभिन्न “अजायबघरों” में, मेरा अभिप्राय, देशों में बंटे तीव्र अभाव में जी रहे भारतीय मूल के निवासियों को देखने-समझने से ही दोषी को पहचाना जा सकता है। आज श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व के अंतर्गत केंद्र में राष्ट्रीय शासन स्थापित होते गुप्त-रूप-से-आयोजित विभाजन के इतिहास को और तूल न दे हमें भविष्य का सोचना होगा।

  2. जिनाह् कॊ लॆकर् विवाद् अपनॆ आप मॆ ऎक विचित्र बात है वॊ भी आज़ाद भारत मॆ. क्या और समस्या नही है हमारॆ पास जिस पर बहस और सार्थक विचार हॊ.ज़िनाह,पाकिस्तान आज़ादी सॆ हमारॆ पीछॆ ऎक भूत की तरह लगॆ हुऎ है. समझदार व्यक्ति भविश्य की तरफ दॆखता है, ना की भूतकाल मॆ. यॆ राजनिती कॆ स्वार्थी लॊग है जॊ इन बातॊ कॊ अपनॆ मक्सद की पूर्ति कॆ लियॆ आम जनता मॆ लातॆ है.तब जब मज़हबी दन्गॊ का ज़ख्म भी ना भरा हॊ.हमॆ क्या मिला, हम पहलॆ उसॆ तॊ स्म्भाल लॆ.अभी सिर्फ इसी बात की आवश्य्कता है हमारॆ दॆश कॊ. नॆहरु ज़िन्नाह की नही आज़ कॆ नॆताऒ पर खुलकर बहस हॊनी चहिऎ.

  3. जिनाह् कॊ लॆकर् विवाद् अपनॆ आप मॆ ऎक विचित्र बात है वॊ भी आज़ाद भारत मॆ. क्या और समस्या नही है हमारॆ पास जिस पर बहस और सार्थक विचार हॊ.ज़िनाह,पाकिस्तान आज़ादी सॆ हमारॆ पीछॆ ऎक भूत की तरह लगॆ हुऎ है. समझदार व्यक्ति भविश्य की तरफ दॆखता है, ना की भूतकाल मॆ. यॆ राजनिती कॆ स्वार्थी लॊग है जॊ इन बातॊ कॊ अपनॆ मक्सद की पूर्ति कॆ लियॆ आम जनता मॆ लातॆ है.तब जब मज़हबी दन्गॊ का ज़ख्म भी ना भरा हॊ.हमॆ क्या मिला, हम पहलॆ उसॆ तॊ स्म्भाल लॆ.अभी सिर्फ इसी बात की आवश्य्कता है हमारॆ दॆश कॊ. नॆहरु ज़िन्नाह की नही आज़ कॆ नॆताऒ पर खुलकर बहस हॊनी चहिऎ.

  4. To
    The Editor
    PRAVAKTA.COM

    Dear Sanjay Jee
    I Thought, there is no scarcity regardibng political issue in Our Indian News World. But Yiou have continued the JINNAH on Your WEB Cover.Please change it towards new issue over the pakistan characterstics against India, preserved duering last 62 Years.
    This is an advice to reform your News presentation pursuit on this Web, from a big brotgher have been devoted to develope Indian Nationalism over the Glob.
    Thanks and regards
    Shahid Raheem ORF

  5. Many many thank to Mr. Shaheed Raheem for giving this secret mission behind the book and his request to stop the discussion on the book because the continuous discussion will serve as the desired by so called heir of Mr. Jinnah.
    scmudgal

  6. Please Stop to discuss Jinnah

    It is enough, that we indian have leanly discussed about Jinnah.It should be clear to our new generation that Jinnah could not be relevent for we Indians. Jinnah was a splitter.Mr. Jaswant Singh declared that Many of the Senior Indian leader like RAJ GOPALACHARI has underlined him as Bridge leader between Hindu and Muslim. But it was an incident, before the conceptualisation of Pakistan.
    Pakistan first conceptualised by Great Urdu Poet Dr. Allama Equbal, the creater of SARE JAHAN SE ACHCHHA HINDUSTAN HAMARA. it is on the Record that PAKISTAN proposal has been prepared on the basis of a lecture deleverd by DR. Equbal in Allahabad in 1925. But Indians are widely appreciating Dr. Equbal, due to his thoughts preserved in his life time poetry Collections Zarb-e-Kaleem, Bang-e-Dara, Bal-e-Gibreel and other.

    Now a question arise that why Mr.Jaswant Singh has wriiten this controversial book favouiring jinnah? it was an Investigation that Grand son of Mr. Jinnah, Nusli Wadia is residing in Mubai. he turned into another relegion than islam and always claiming to achieve benefits from the legacy of Jinnah. A Bunglow JINNAH HOUSE is also situated in Mumbai, in Indian Custodian. When Nusli Wadia claimes to Occupy the bunglow, Indian Governement objected, that this bunglow could be made as JINNAH MEMORIAL, because JINNAH was resposible to divide India and biggest of Massacare-1947 in south Asia.
    Then the project to occupy JINNAH HOUSE in the name of to make it JINNAH MEMORIAL is under suspension.
    After ome time Nusli Wadia started Searching an Indian writer to Underlined Jinnah as Historical Hero, But many of the professional writers have ignored the project. Then Nusli Wadia contacted to Mr. Jaswant Singh.He writes the book favouring Jinnah, to clear the breakage in Making JINNAH MEMORIAL. News Report said that Nusli Wadia has paid about Rs.2.50 Crores (Rupees Two and Half Crore)excluding the expences in Reasearch and oublication. Now Nusli wadia is in Position to Occupy NINNAH HOUSE. That Bunglow has its own Cost about 200 Crore.He wants to make an multistory building on thae land after demolition of the bunglow, and JINNAH MEMORIAL will be established on any One floor out of 30 stories. So it is a matter to earn more than money. Sources said that Nusli Wadia also commited to gift one floor in the name of any family member of mr. Jaswant Singh.The Publisher is also commited the same to Open his new office in same Jinnah House.
    So, it has been clear that discussion on Jinnah is a baseless support for the people, and all these negative and positive activities will have to beneficitae Nusli wadia to occupy JINNAH HIOUSE IN Mumbai.
    Hence, It should be end Now.
    Thanks and regard,
    Shahid Raheem, ORF
    raheem.shahid@gmail.com

  7. भारत मे कांग्रेस पार्टीका अस्तित्वका आधार हीं भारत-पाक विभाजन एवम हिन्दु-मुस्लीम घृणा है । जबकि भाजपाई हिन्दुस्तान-पाकिस्तान की पुनः एकता के सपने देखने वाले लोग है । लेकिन पश्चिमी देशो के प्रभाव के कारण मिडीया आम जनमानस इस सच्चाई के विपरित धारणा बनाने मे लगी रहती है और सफल भी है । भारत-पाकिस्तान विभाजन अप्राकृतिक है । भारत-पाकिस्तान के बीच अगर झगडे ना हो तो दक्षिण एसिया विश्व की सबसे ताकतवर शक्ति के रुप मे उभर कर आ जाएगा ।

  8. सबसे पहले मैं संजीव कुमार सिन्हा जी, का शुक्रगुज़ार हूं जो उन्होने मुझे इस लेख पर मेरी राय रखने लायक समझा और मुझे इस लेख का लिन्क मेल किया।

    हिन्दुस्तान के विभाजन का ज़िम्मेदार कौन था?????

    ये एक बहुत बडा सवाल है…मैं आपकी बात से सहमत हूं की जो जिस नज़र से देखेगा उसको वो ही दिखेगा…हमारे देश के इतिहास जितने भी महान लोग हुये है वो सब एक इंसान थे जिनके अन्दर कुछ गुण थे और कुछ अवगुण थे….तो अगर आप गुण ढुढेंगे तो गुण मिलेंगे और अवगुण ढुढेंगे तो अवगुण मिलेगें….

    तो बेहतर यही है की हम इतिहास को छोडे और अपने वर्तमान और भविष्य की फ़िक्र करें

  9. एक विस्तृत चर्चा की आवश्यकता है की अंग्रेजो की कठपुतली कौन कौन थे . जिन्ना ,गाँधी ,नेहरू आदि आदि .

  10. In 1945 British army was badly defeated at Imphal by Netaji Subash Chandra Bose, with the help of Nagas and handful of POWs. This defeat panicked British government and the British men (sirs) residing in India. They started selling their properties and left India in a hurry. In such a panicky situation British intelligence also reported that the Indian army was not loyal to them any more. The Second World War proved very costly for the British, they were virtually bankrupt and it’s more than half of the population was also already lost at war. British used its diplomacy & promised the Naga Chief that they will grant him full freedom to Nagaland but the only provision what that Nagas should not support Netaji rather support British instead. Nehru-Gandhi also jumped in the band-wagon to show their loyalty in support of the British government publicly. Gandhi-Nehru feared Netaji; if Netaji would be victorious their future will be ruined as no one will care for them. Nehru publicly said that Japanese were coming to enslave Indians for another two hundred years that’s why we must support British government and he further said even if it is Subash he will take a gun and fight against him in the battle field. This type of anti Netaji Subash Chandra Bose statements by Nehru proved to the British their loyalty. So in the eyes of the British Nehru was a worthy candidate to be their loyal subject. When Indian Congress signed the accord with the British that granted “swaraj” it is clearly stated that Netaji is a traitor and he will be handed over to the British where ever and when ever he be arrested.
    Gandhi had also said that he does not want freedom at the cost of even one drop of British blood but he never uttered a word against millions of mass genocide in British India? Gandhi-Nehru loyalty towards the British earned them the crown of India with which Nehru dynasty is still ruling India.
    The famous British Prime Ministers Sir Winston Churchill had said if there would have been three-four more Gandhi’s were born in India British could have ruled India for few more centuries. The then British PM Clement Attlee had accepted that Indian Army was not loyal to the British due to Subash Chandra Bose and that was the reason for them to leave India. (FYI There were only three hundred British controaling the entire Indian peninsula) Mr. Writer please tells us what the real history of Indian freedom is! If you wish to uncover the true history of Indian freedom then I suggest you start with the accord signed between Indian Congress and the British in 1947.

  11. मै इस् विष्य पर् इतने जानकारी नही रखती मगर् नॆहरू जी कॆ इरादॊ पर् अविश्वास् भे नही है उन् जैसॆ इमानदार् और् दॆश् कॆ लियॆ कुर्बानी दॆनॆ वालॆ नॆता आज् क्याआ कोइ हॆ| आप् नॆ जॊ जानकारी दी है जरूर् तथ्य् जुटा कर् दी हॊगी फिर् भी मै नहरू जी की अनन्य् भक्त् हू बचपन् मॆ भाखडा डेम् काजॊ उपहार् हमॆ उन्हॊनॆ दिया है और् आज् तक् उन्ही की बदोलत् रॊटी खा रहॆ इस् लियॆ इस् पर् कुछ् नही कहूगी क्श्मा चाहती हू

  12. आज् हम् भरत् पकिस्तन् कॆ बत्वरॆ कि बत् ऒर् उस्कअ दॊशि दुन्ध्ते ह ऒर् अप्नॆ प्रन्तॊ कॆ तुक्दॆ कर् रह ह

  13. मै निश्चित् रुप् सॆ नॆहरु जी कॊ विभाजन् कॆ लियॆ जिम्मॆवार् मानता हू उन्हॆ अपनी ताजपॊशी की जल्दी जॊ थी.
    सरदार बल्लभ् भाई पटॆल् उनकॆ पूरक जरूर थॆ परन्तु अङ्र्रॆजियत मॆ रचॆ बसॆ नॆहरु वॆश् भूशा मॆ भारतीय‌ हॊनॆ पर भी विचारॊ सॆ गान्धीजी सॆ उतनॆ प्रभावित नहि थॆ

  14. जिन्‍ना तो वाकई आज भी जिन्‍न साबित हो रहे हैं, उनका इस्लाम से किया लेना देना, ना मरने से पहले था मरने के बाद है, इसकी एक मिसाल पाकिस्‍तानी नोट पर बना उनका चित्र ही है, सबको पता है इस्लाम में चित्र मजबूरन ही दिया जा सकता है, इधर नेहरू जी का चित्र हो सकता गाँधी जी आशिर्वाद से, मैं आपकी इस बात से सहमत हूँ ‘नेहरू को हिन्दू जिन्ना कहा जा सकता है और जिन्ना तो मुस्लिम जिन्ना थे ही, यह अलग बात है कि नेहरू का हिन्दुत्व में विश्वास नहीं था और जिन्ना का इस्लाम पर भरोसा नहीं था।’
    मैंने किताब नहीं पढी इसलिये इससे अधिक कह नहीं सकता कोई भेज दो तो, दुनिया देखे सुनेगी कि हम भी जबाँ रखते हैं,

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